एक महत्वपूर्ण फैसले में, दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता), 406 (आपराधिक विश्वास भंग) और 34 (साझा इरादा) के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। छैल बिहारी और अन्य बनाम दिल्ली राज्य और एक अन्य नामक इस मामले का फैसला न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने 5 अगस्त, 2025 को सुनाया। अदालत ने नाबालिग बच्चों के हितों की रक्षा पर जोर देते हुए गंभीर आपराधिक आरोपों को समझौते के जरिए खत्म करने के प्रयास को न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के रूप में देखा।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, जो शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) के ससुराल वाले थे, ने नंद नगरी पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर संख्या 417/2022 को रद्द करने का अनुरोध किया था। उन्होंने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने उनके साथ मामले को सुलझा लिया था। शिकायतकर्ता, जो एक विधवा हैं और दो बच्चों की परवरिश कर रही हैं, अदालत में मौजूद थीं और उन्हें जांच अधिकारी (IO), SI गौरव यादव ने पहचाना था। कार्यवाही के दौरान, न्यायमूर्ति काठपालिया ने पक्षकारों के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए हिंदी में बातचीत की।
शिकायतकर्ता ने बताया कि उनके भरण-पोषण, गुजारा भत्ता या उनके स्त्रीधन (व्यक्तिगत संपत्ति) की वापसी को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ था। साथ ही, उनके नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि उन्होंने शिकायतकर्ता के खिलाफ IPC की धारा 306 (आत्महत्या का दुष्प्रेरण) के तहत दर्ज शिकायत वापस ले ली थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता के पति ने आत्महत्या कर ली थी।
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न्यायमूर्ति काठपालिया ने IPC की धारा 306 के तहत दर्ज शिकायत वापस लेने पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अगर शिकायत में कोई सच्चाई होती, तो उसे वापस लेना मृतक के साथ अन्याय होता। न्यायाधीश ने कहा:
"इस तरह के मुकदमों की अदला-बदली निश्चित रूप से अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिसे अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल करके पवित्र नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब मृतक के नाबालिग बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं किया गया हो।"
अदालत ने इसे असामान्य बताया कि मृतक के परिवार वाले आत्महत्या के दुष्प्रेरण की शिकायत को वापस ले लेंगे, अगर वह सच्ची होती। इससे समझौते के पीछे के इरादों और याचिकाकर्ताओं के मकसद पर गंभीर सवाल खड़े हो गए।
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निर्णय और प्रभाव
अदालत ने याचिका और लंबित आवेदन को खारिज कर दिया और एफआईआर या बाद की कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति काठपालिया ने जोर देकर कहा कि न्याय के हित में ऐसे समझौतों को अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर जब नाबालिग बच्चों का कल्याण दांव पर हो।
यह फैसला न्यायपालिका की उस प्रतिबद्धता को उजागर करता है जिसमें आपराधिक मामलों, विशेष रूप से घरेलू हिंसा और कमजोर पक्षकारों के कल्याण से जुड़े मामलों, को हल्के में नहीं लिया जाएगा या सभी परिणामों पर विचार किए बिना समझौता नहीं किया जाएगा। यह एक चेतावनी भी है कि अदालतें व्यक्तिगत लाभ के लिए कानूनी प्रक्रियाओं में हेराफेरी के प्रयासों की जांच करेंगी।
केस का शीर्षक: छैल बिहारी एवं अन्य बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) एवं अन्य
केस संख्या: CRL.M.C. 5269/2025 और CRL.M.A. 22752/2025