केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया कि जब किसी व्यक्ति को उसकी कृषि भूमि के जबरन अधिग्रहण पर मुआवज़ा (enhanced compensation और interest सहित) मिलता है, तो उसे आयकर अधिनियम के तहत ‘कैपिटल गेन्स’ माना जाएगा, न कि ‘अन्य स्रोतों से आय’।
यह निर्णय दो आयकर अपीलों – I.T.A. No. 32/2023 और I.T.A. No. 60/2024 – में दिया गया। पीठ में शामिल थे डॉ. जस्टिस ए. के. जयराजन नांबियार और जस्टिस ईश्वरन एस.
श्री अनवर अली पूलक्कोडन और श्री अब्दुल अज़ीज़ पूलक्कोडन ने बताया कि राज्य सरकार ने उनकी कृषि भूमि का जबरन अधिग्रहण किया था और इसके बदले उन्हें मुआवज़ा और कोर्ट द्वारा बढ़ाया गया मुआवज़ा (enhanced compensation) मिला। साथ ही कोर्ट ने Land Acquisition Act, 1894 (LAA) के तहत ब्याज भी दिलाया।
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इन व्यक्तियों ने यह पूरी राशि – जिसमें ब्याज भी शामिल था – को कैपिटल गेन्स के रूप में घोषित किया और धारा 10(37) के तहत कर से छूट का दावा किया।
लेकिन इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि ब्याज की राशि को धारा 56(2)(viii) के तहत ‘अन्य स्रोतों से आय’ माना जाएगा, और उस पर धारा 10(37) का लाभ नहीं मिलेगा।
- I.T.A No. 32/2023 में ट्रिब्यूनल ने कहा: “9% ब्याज को कैपिटल गेन्स माना जाएगा, लेकिन 15% ब्याज ‘अन्य स्रोतों से आय’ होगा।”
- I.T.A No. 60/2024 में ट्रिब्यूनल ने कहा: “धारा 56(2) में 1.4.2010 से किए गए संशोधन के बाद, अधिग्रहण मुआवज़े में देरी से मिलने वाला ब्याज केवल 'अन्य स्रोतों' की आय होगा।”
हाईकोर्ट ने इस विचार से असहमति जताई और सही कानूनी व्याख्या प्रस्तुत की।
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"जबरन अधिग्रहण पर मिलने वाला मुआवज़ा और बढ़ा हुआ मुआवज़ा, दोनों आयकर अधिनियम के तहत ‘कैपिटल गेन्स’ माने जाएंगे।"
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि LAA की धारा 28 या 34 के तहत मिलने वाला ब्याज पारंपरिक ब्याज (Interest) नहीं है जैसा कि आयकर अधिनियम की धारा 2(28A) में परिभाषित है। बल्कि यह:
“मूल मुआवज़े का हिस्सा होता है, क्योंकि यह देरी से भुगतान की क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जाता है।”
इसलिए इसे कैपिटल गेन्स माना जाना चाहिए और यदि भूमि कृषि योग्य है, तो धारा 10(37) के अंतर्गत कर से छूट मिलेगी।
यह धारा उन व्यक्तियों को कर में छूट देती है जो कृषि भूमि के जबरन अधिग्रहण से प्राप्त पूंजीगत लाभ (Capital Gains) पर कर बचाना चाहते हैं। इसके लिए:
- भूमि नोटिफाइड एरिया में होनी चाहिए।
- अधिग्रहण से पहले दो वर्षों में भूमि का उपयोग कृषि के लिए हुआ हो।
- अधिग्रहण जबरन हुआ हो।
- मुआवज़ा 1 अप्रैल 2004 या उसके बाद मिला हो।
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कोर्ट ने देखा कि इन मामलों में सभी शर्तें पूरी हुईं, इसलिए:
“यदि अधिग्रहण कृषि भूमि का है तो ब्याज राशि पर भी धारा 10(37) की छूट मिलेगी।”
कोर्ट ने कई संवैधानिक प्रावधानों और निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“जबरन अधिग्रहण पर मिलने वाला मुआवज़ा अनुच्छेद 300A के तहत संवैधानिक दायित्व है।”
कोर्ट ने धर्निधर मिश्रा बनाम बिहार राज्य और कोलकाता म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन बनाम बिमल कुमार शाह जैसे मामलों का जिक्र किया, और दोहराया कि:
“हालांकि संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, फिर भी यह एक संवैधानिक और मानवाधिकार बना हुआ है।”
इसलिए मुआवज़ा और उस पर देरी से मिला ब्याज उसी गरिमा के साथ देखा जाना चाहिए और उस पर गलत टैक्स लागू करना न्याय के खिलाफ होगा।
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“LAA के तहत मिलने वाला ब्याज भी मूल मुआवज़े का हिस्सा माना जाएगा और उसे ‘कैपिटल गेन्स’ के रूप में टैक्स किया जाएगा।”
साथ ही:
“यह ब्याज धारा 2(28A) के अंतर्गत ‘Interest’ की परिभाषा में नहीं आता, इसलिए धारा 56 लागू नहीं होगी।”
केरल हाईकोर्ट ने दोनों अपीलों को मंज़ूरी दी और आयकर विभाग के खिलाफ और करदाताओं के पक्ष में निर्णय सुनाया।
- जबरन अधिग्रहण पर मिला मुआवज़ा और बढ़ा हुआ मुआवज़ा = कैपिटल गेन्स
- उस पर मिलने वाला ब्याज (LAA की धारा 28/34 के तहत) = कैपिटल गेन्स
- कृषि भूमि पर मिलने वाला मुआवज़ा और ब्याज = धारा 10(37) के तहत कर से छूट
- धारा 56(2)(viii) ऐसे मामलों में लागू नहीं होती
“देरी से मुआवज़ा मिलने पर दिया गया ब्याज भी मुआवज़े का ही हिस्सा होता है।”
“जिनकी ज़मीन जबरन अधिग्रहित हुई, उन्हें पूरा मुआवज़ा तुरंत मिलना चाहिए था। जब नहीं मिला तो ब्याज भी उसी मुआवज़े की तरह देखा जाएगा।”
केस का शीर्षक: अनवर अली पूलकोडन बनाम आयकर अधिकारी
केस संख्या: आयकर विभाग संख्या 32/2023
याचिकाकर्ता/करदाता के वकील: अनिल डी. नायर, आदित्य नायर और तेलमा राजू
प्रतिवादी/विभाग के वकील: पी.जी. जयशंकर और कीर्तिवास गिरी