एक महत्वपूर्ण निर्णय में, केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी चेक का भुगतान फर्म को किया जाना है तो उस फर्म का मैनेजर व्यक्तिगत रूप से धारा 138, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के तहत शिकायत दर्ज नहीं कर सकता।
यह फैसला जस्टिस ए. बदरुद्दीन द्वारा 16 जून 2025 को सुनाया गया, जब उन्होंने के. रामचंद्रन द्वारा दायर की गई क्रिमिनल अपील संख्या 968/2007 को खारिज कर दिया। रामचंद्रन, केरल रोडवेज लिमिटेड की पेरिंथलमन्ना शाखा के मैनेजर थे। उन्होंने आरोपी गोपी के खिलाफ ₹65,000 के चेक बाउंस मामले में निचली अदालत के आरोपी को बरी करने के फैसले को चुनौती दी थी।
“कानूनी स्थिति स्पष्ट है कि जब कोई व्यक्ति फर्म, कंपनी या संस्था के पक्ष में चेक जारी करता है, तो उस चेक का 'पेयी' वही फर्म, कंपनी या संस्था होती है, और 'होल्डर इन ड्यू कोर्स' भी वही होती है, क्योंकि वही कानूनी रूप से भुगतान प्राप्त करने की अधिकारी होती है…”
— जस्टिस ए. बदरुद्दीन
निचली अदालत ने आरोपी को दो प्रमुख आधारों पर बरी किया था:
- निर्धारित समय में कोई कानूनी नोटिस नहीं भेजा गया।
- शिकायत फर्म के मैनेजर द्वारा उनके व्यक्तिगत नाम से दर्ज की गई, जबकि चेक फर्म की देनदारी से संबंधित था न कि व्यक्तिगत रूप से उनकी।
इस बात की जांच करते हुए कि क्या मैनेजर व्यक्तिगत रूप से ऐसे मामले में अभियोजन चला सकता है, हाईकोर्ट ने एनआई एक्ट की धारा 7, 8, 9, 138 और 142(1)(a) का हवाला दिया। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला:
“धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने के लिए सक्षम व्यक्ति केवल 'पेयी' या 'होल्डर इन ड्यू कोर्स' ही हो सकते हैं। फर्म के मामले में केवल फर्म ही पेयी होती है, न कि उसका मैनेजर व्यक्तिगत रूप से।”
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अदालत ने जोर देकर कहा कि फर्म किसी अधिकारिक प्रतिनिधि के माध्यम से शिकायत दर्ज कर सकती है, लेकिन शिकायत फर्म के नाम से ही होनी चाहिए, न कि उस अधिकारी के व्यक्तिगत नाम से।
इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल स्वामित्व (प्रोप्राइटरशिप) फर्म के मामले में, स्वामी स्वयं व्यक्तिगत रूप से शिकायत दर्ज कर सकता है क्योंकि वही पेयी होता है।
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इन कानूनी सिद्धांतों को लागू करते हुए, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और अपील को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह अभियोजन कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है क्योंकि यह शिकायत फर्म के मैनेजर द्वारा व्यक्तिगत रूप से दर्ज की गई थी।
“याचिकाकर्ता मैनेजर होने के नाते ‘पेयी’ या ‘होल्डर इन ड्यू कोर्स’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते क्योंकि चेक की राशि उनके व्यक्तिगत नाम पर देय नहीं थी।”
— केरल हाईकोर्ट
मामले का शीर्षक: के. रामचंद्रन बनाम गोपी एवं अन्य
अपीलकर्ता के वकील: एडवोकेट एम. शाजू पुरुषोथमन
प्रत्युत्तरकर्ताओं के वकील: एडवोकेट पी. वेंगूपाल (R2 के लिए), एडवोकेट शीबा थॉमस (लोक अभियोजक)