केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पुलिस अधिकारी निगरानी के नाम पर किसी भी इतिहासशीटर या आपराधिक संदिग्ध के घर में आधी रात को प्रवेश नहीं कर सकते। यह फैसला उस आपराधिक याचिका पर आया, जो प्रसथ सी नामक व्यक्ति ने केरल पुलिस अधिनियम, 2011 की धारा 117(e) के तहत दर्ज एफआईआर को चुनौती देते हुए दायर की थी।
न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण ने इस फैसले में घर की गरिमा और पवित्रता को रेखांकित करते हुए कहा:
“हर आदमी का घर उसका किला या मंदिर है, जिसकी पवित्रता को अजीब समय पर दरवाजा खटखटाकर अपवित्र नहीं किया जा सकता।”
याचिकाकर्ता, जो पहले एक झूठे POCSO मामले में बरी हो चुका है, ने आरोप लगाया कि उच्च अधिकारियों से शिकायत करने पर पुलिस उसे प्रताड़ित कर रही है। 3 अप्रैल 2025 की रात करीब 1:30 बजे पुलिस ‘रोडी इतिहासशीटरों’ की रात में निगरानी के दौरान उसके घर पहुंची। जब उसने बाहर आने से इनकार किया और कथित रूप से पुलिस से बहस की, तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई।
अदालत ने केरल पुलिस मैनुअल के पैरा 265 का उल्लेख किया, जो केवल संदिग्धों पर ‘अनौपचारिक निगरानी’ या ‘करीबी निगरानी’ की अनुमति देता है, वह भी उनके आपराधिक व्यवहार के आधार पर। मैनुअल में कहीं भी रात में घर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है।
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“निगरानी के नाम पर पुलिस इतिहासशीटरों के घर में घुस या दरवाजा खटखटा नहीं सकती,” कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा।
न्यायालय ने खरक सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1962) मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने रात के समय पुलिस द्वारा घर में प्रवेश को असंवैधानिक करार दिया था। इसके साथ ही के.एस. पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ (2017) में गोपनीयता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया गया।
“गोपनीयता में व्यक्तिगत अंतरंगता, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, विवाह, प्रजनन और घर की गरिमा शामिल होती है… गोपनीयता का मतलब है अकेले छोड़े जाने का अधिकार।”
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इसके अलावा, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे कृत्य को केरल पुलिस अधिनियम की धारा 39 के तहत ‘वैध निर्देश’ नहीं माना जा सकता।
“आधी रात को किसी इतिहासशीटर के घर का दरवाजा खटखटाना और उसे बाहर आने को कहना किसी भी परिस्थिति में वैध निर्देश नहीं कहा जा सकता।”
इस आधार पर, कोर्ट ने धारा 117(e) के तहत दर्ज एफआईआर को अमान्य घोषित किया और सभी संबंधित कार्यवाही रद्द कर दी।
मामले का नाम: प्रसथ सी बनाम केरल राज्य एवं अन्य
मामला संख्या: Crl.M.C. No. 3751 of 2025
याचिकाकर्ता के वकील: अशिक के. मोहम्मद अली एवं टीम
प्रत्युत्तर पक्ष के वकील: एम.सी. आशी, वरिष्ठ लोक अभियोजक