दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि डिस्काउंटेड कैश फ्लो (DCF) पद्धति असूचित इक्विटी शेयरों के मूल्य निर्धारण के लिए आयकर नियम, 1962 के नियम 11UA(2)(b) के तहत एक वैध तकनीक है। यह निर्णय आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT) द्वारा A.H. Multisoft Pvt. Ltd. के पक्ष में दिए गए फैसले के खिलाफ आयकर विभाग की अपील को खारिज करते हुए आया।
विवाद तब शुरू हुआ जब A.H. Multisoft ने अपने मौजूदा शेयरधारकों को शेयर जारी कर पूंजी जुटाई ताकि वह South Asia FM Ltd. (SAFL) के राइट्स इश्यू में भाग ले सके—जो 'रेड एफएम' ब्रांड के तहत महत्वपूर्ण एफएम प्रसारण लाइसेंस रखता है।
कंपनी ने अपने शेयरों के वास्तविक बाजार मूल्य (FMV) को निर्धारित करने के लिए DCF पद्धति से तैयार एक मूल्यांकन रिपोर्ट पर भरोसा किया, जो एक विशेषज्ञ चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा तैयार की गई थी और प्रत्येक शेयर का मूल्य ₹2,771.65 दर्शाया गया था। इस आधार पर शेयर ₹2,772 (प्रीमियम सहित) में जारी किए गए। लेकिन असेसिंग ऑफिसर (AO) ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया और यह कहते हुए कि रिपोर्ट में डिस्क्लेमर शामिल हैं, बुक वैल्यू आधारित मूल्यांकन अपनाया, जिससे FMV नकारात्मक हो गया। नतीजतन, AO ने कंपनी की आय में ₹30.37 करोड़ की जोड़ की धारा 56(2)(viib) के तहत की।
"असेसी ने SAFL में रखे गए असूचित इक्विटी शेयरों को DCF पद्धति से मूल्यांकित किया था। यह नियम 11UA(2) के तहत वैध है।" — दिल्ली हाईकोर्ट
ITAT ने AO के इस निष्कर्ष को खारिज किया और कहा कि रिपोर्ट में दिए गए डिस्क्लेमर सामान्य प्रकृति के थे और इससे न तो पद्धति की वैधता पर असर पड़ता है और न ही डेटा की सटीकता पर। AO को यदि रिपोर्ट में त्रुटि साबित करनी थी तो उसका उत्तरदायित्व भी उसी पर था, जिसे वह पूरा नहीं कर सका।
हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 56(2)(viib) के तहत कंपनी FMV को निर्धारित करने के लिए या तो नियम के अनुसार पद्धति अपना सकती है या AO की संतुष्टि के लिए उसे वैध तरीके से प्रमाणित कर सकती है। इस मामले में कंपनी ने एक प्रमाणिक विशेषज्ञ रिपोर्ट के माध्यम से FMV को उचित रूप में प्रमाणित किया है, इसलिए इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।
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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इसमें कोई कपटपूर्ण उद्देश्य या बेहिसाबी धन को वैध दिखाने की मंशा नहीं थी। जो राशि जुटाई गई थी, उसका उपयोग SAFL के शेयर खरीदने में किया गया, जो स्वयं DCF पद्धति से मूल्यांकित था और जिसे RBI ने भी मान्यता दी थी।
"विशेषज्ञ की रिपोर्ट को केवल डिस्क्लेमर के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता, जब तक कि AO उसमें प्रयुक्त डेटा में कोई ठोस त्रुटि न दर्शाए।" — दिल्ली हाईकोर्ट
राजस्व विभाग ने यह भी तर्क दिया कि कंपनी ने DCF और नेट एसेट वैल्यू (NAV) दोनों पद्धतियों को मिलाकर मूल्यांकन किया है। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि कंपनी ने केवल DCF पद्धति ही अपनाई थी, जो नियम 11UA(2)(b) के अंतर्गत वैध है। इसके अलावा, ICAI की Valuation Standard 301 भी इस प्रकार की डीसीएफ आधारित वैल्यूएशन की अनुमति देती है।
अंततः, दिल्ली हाईकोर्ट ने आयकर विभाग की अपील खारिज कर दी, और इस तरह A.H. Multisoft Pvt. Ltd. के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले से यह स्पष्ट संकेत मिला कि असूचित शेयरों की वैल्यूएशन में DCF पद्धति को सही और स्वीकार्य माना जाएगा, यदि उसे विशेषज्ञ रिपोर्ट द्वारा प्रमाणित किया गया हो।
मामले का नाम: प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त-1 बनाम ए.एच. मल्टीसॉफ्ट प्राइवेट लिमिटेड।
मामला संख्या: ITA 9/2025