इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य निगमों, विशेषकर उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) में अधिवक्ताओं की नियुक्ति में प्रभाव के बजाय योग्यता को महत्व देने की आवश्यकता पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने टिप्पणी की कि वर्तमान प्रणाली में प्रायः प्रभावशाली परिवारों से जुड़े व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि राजनीतिक संबंधों से रहित, योग्य प्रथम पीढ़ी के अधिवक्ताओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
यह मामला कोर्ट के पूर्व आदेशों की अवहेलना से जुड़ा है। आंतरिक जांच में पता चला कि श्रम न्यायालय में अधिवक्ताओं की लापरवाही से स्थिति उत्पन्न हुई, जिसके बाद यूपीएसआरटीसी ने जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। अदालत ने जोर देते हुए कहा कि,
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"योग्य अधिवक्ताओं की नियुक्ति निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से होना सुशासन का मूल है",
और सुप्रीम कोर्ट के फैसले कुमारी श्रीलेखा विद्याधरि बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1991) का हवाला दिया।
अदालत ने व्यवस्था की खामियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कई बार नियुक्त अधिवक्ता व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं होते और अपने जूनियर को कार्य सौंप देते हैं। इस समस्या की पहले गौरव जैन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में भी आलोचना की गई थी, जहां अदालत ने राज्य को निर्देश दिया था कि अधिवक्ता अपनी जिम्मेदारी किसी और को न सौंपें।
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न्यायमूर्ति भनोट ने कहा कि अधिवक्ताओं का चयन अदालती कार्यवाही में उनके प्रदर्शन, ईमानदारी और क्षमता के स्वतंत्र मूल्यांकन के आधार पर होना चाहिए, जिसमें निगम के अधिकारी गुप्त रूप से कोर्ट की कार्यवाही देखकर योग्य उम्मीदवारों की पहचान करें। UPSRTC के प्रबंध निदेशक ने अदालत को आश्वासन दिया कि पारदर्शिता को बढ़ावा देने और प्रतिभाशाली युवा अधिवक्ताओं को अवसर देने के लिए प्रयास किए जाएंगे।
अगली सुनवाई से पहले UPSRTC बोर्ड की बैठक बुलाकर योग्यता-आधारित नियुक्ति की रूपरेखा तय करनी होगी। मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर 2025 को होगी।
केस का शीर्षक:- श्रीमती जुबेदा बेगम एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन एवं अन्य
केस संख्या:- रिट-सी संख्या 12610/2025