केरल हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है कि पति-पत्नी के बीच किसी भी निजी समझौते के जरिए पत्नी द्वारा भरण-पोषण के अधिकार को छोड़ा नहीं जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा कोई भी त्यागपत्र, चाहे दस्तावेजी हो, न केवल कानूनी रूप से अमान्य है, बल्कि सार्वजनिक नीति के भी खिलाफ है।
न्यायमूर्ति ए. बादरुद्दीन ने मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला देते हुए स्पष्ट रूप से कहा:
“कानूनी स्थिति इस विषय पर पूरी तरह स्पष्ट है कि यदि पत्नी और पति के बीच, चाहे वह अदालत में दाखिल समझौता हो या अन्यथा, कोई ऐसा समझौता किया गया हो, जिसमें पत्नी भविष्य में पति से भरण-पोषण का दावा छोड़ देती है, तो ऐसा समझौता सार्वजनिक नीति के खिलाफ है और यह उसे भरण-पोषण के लिए दावा करने से नहीं रोकता।”
यह टिप्पणी एक ऐसे मामले में की गई थी, जहां पूर्व पति ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को ₹30,000 प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। उसका तर्क था कि उनके बीच पहले एक समझौता हुआ था जिसमें दहेज, गुजारा भत्ता और भरण-पोषण से जुड़े सभी विवाद सुलझा लिए गए थे।
हालांकि, हाईकोर्ट ने यह पाया कि प्रस्तुत समझौते में भरण-पोषण के लिए कोई वास्तविक भुगतान नहीं किया गया था, बल्कि इसमें केवल यह उल्लेख था कि पत्नी ने अपना भरण-पोषण का दावा छोड़ दिया है। इस आधार पर अदालत ने कहा:
“भरण-पोषण के अधिकार का ऐसा परित्याग कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।”
पूर्व पत्नी ने अपने बचाव में कहा कि तलाक से पहले उसे दहेज के लिए घरेलू हिंसा और प्रताड़ना का सामना करना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय जुवेरिया अब्दुल मजीद पटनी बनाम अतिफ इकबाल मंसूरी व अन्य (2014) का हवाला देते हुए, केरल हाईकोर्ट ने दोहराया कि तलाकशुदा पत्नी भी घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
इसके अलावा, महिला ने दावा किया कि उसका पूर्व पति, जो एक पायलट है, ₹15 लाख प्रति माह कमा रहा है। जवाब में पति ने माना कि उसकी मासिक आय ₹8,35,000 है। उसने यह भी कहा कि पत्नी योगा स्टूडियो से ₹2 लाख प्रति माह कमा रही है।
इसके बावजूद, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के अंतरिम भरण-पोषण के आदेश में कोई दखल नहीं दिया और कहा:
“जब पति की मासिक आय ₹8,35,000 है और पत्नी की आय अब तक कोर्ट के सामने स्थापित नहीं हुई है, तब ₹30,000 का अंतरिम भरण-पोषण हस्तक्षेप योग्य नहीं है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी के पास स्वतंत्र आय है या नहीं, और उसके पास क्या संपत्ति है, यह प्रमाणों के आधार पर तय किया जाएगा, जो ट्रायल कोर्ट में सुनवाई के दौरान सामने आएंगे। हाईकोर्ट ने कहा:
“ट्रायल कोर्ट उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर भरण-पोषण के हक को स्वतंत्र रूप से तय कर सकता है।”
संक्षेप में, केरल हाईकोर्ट के इस निर्णय ने यह सिद्ध किया कि पत्नी का भरण-पोषण पाने का अधिकार कानून और सार्वजनिक हित का विषय है, जिसे किसी निजी समझौते द्वारा खत्म नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता के वकील: अधिवक्ता पी. ए. अयूब खान, निजी के. शाहुल
प्रतिवादियों के वकील: अधिवक्ता रेमा स्मृति वी. के., जिबू टी. एस. (पीपी)
केस नंबर: सीआरएल.रेव. पेट 1121 ऑफ 2024
केस का शीर्षक: लाजू चेरियन बनाम तारा लाजू और केरल राज्य