हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि मध्यस्थता की कार्यवाही लंबित हो तो भी भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के तहत स्टांप प्राधिकरण स्वतंत्र रूप से कार्रवाई कर सकते हैं।
यह मामला एम/एस डीएलएफ होम डेवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने स्टांप ड्यूटी से संबंधित कार्यवाही को रोकने की मांग की थी। उनका तर्क था कि जब मामला मध्यस्थता में विचाराधीन है और पंच नियुक्त हो चुका है, तो स्टांप ड्यूटी से जुड़े सभी विवाद मध्यस्थता में ही निपटने चाहिए।
लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने कहा:
“सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी आदेश या टिप्पणी में ऐसा कोई निर्देश नहीं मिला, जिससे यह स्पष्ट हो कि यदि समझौते में स्टांप ड्यूटी की कमी हो तो स्टांप प्राधिकरण को कार्रवाई करने से रोका गया हो।”
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अधिस्थापन की अनुपस्थिति में भी मध्यस्थता की कार्यवाही रुक नहीं सकती और पंच को स्टांप ड्यूटी की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार है। लेकिन हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह निर्णय स्टांप प्राधिकरण की शक्ति को नहीं रोकता।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दिल्ली हाईकोर्ट और मध्यस्थता न्यायाधिकरण में मामला लंबित होने के कारण स्टांप प्राधिकरण को कार्यवाही शुरू नहीं करनी चाहिए। उन्होंने स्टांप वसूली को रद्द करने की भी मांग की।
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राज्य पक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया और बताया कि याचिकाकर्ता को पहले ही नोटिस दिए गए थे और उसने उनका उत्तर भी दिया है, फिर याचिका बहुत देर से दायर की गई। इसके अलावा, अनुबंध में स्पष्ट रूप से स्टांप ड्यूटी की जिम्मेदारी याचिकाकर्ता की बताई गई थी।
वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जब पंच पहले से नियुक्त हैं, तब स्टांप ड्यूटी की कार्यवाही करना पक्षपातपूर्ण है और नोटिस पूर्वनियोजित है।
कोर्ट ने Siemens Ltd बनाम महाराष्ट्र राज्य का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि सामान्यतः हाईकोर्ट को शो-कॉज नोटिस पर दखल नहीं देना चाहिए, लेकिन यदि वह क्षेत्राधिकार के बाहर हो या पूर्व नियोजित हो, तो हस्तक्षेप उचित है।
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साथ ही Union of India बनाम Vicco Laboratories मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई शो-कॉज नोटिस कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करता है, तो उस पर भी हाईकोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।
“यदि कोई व्यक्ति नोटिस का ठीक से जवाब नहीं देता, तो उसे क्या परिणाम भुगतने होंगे — यह नोटिस में स्पष्ट होना चाहिए ताकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हो सके,” — न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल
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अंततः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहा कि शो-कॉज नोटिस पूर्वनियोजित नहीं है और याचिकाकर्ता को उत्तर देने का पूरा अवसर दिया गया है। इसलिए कोर्ट को हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं मिला।
याचिका खारिज कर दी गई।
मुख्य टिप्पणी:
“कानून में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है जो मध्यस्थता की कार्यवाही लंबित होने पर भी स्टांप प्राधिकरण को कार्रवाई से रोकता हो।” — न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल
मामले का शीर्षक: एम/एस डीएलएफ होम डेवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य [रिट - सिविल संख्या - 13451/2025]