Logo
Court Book - India Code App - Play Store

Loading Ad...

सुप्रीम कोर्ट ने IL&FS की IBC याचिका को समयबद्ध माना

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने IL&FS की Adhunik Meghalaya Steels के खिलाफ IBC धारा 7 याचिका को वैध माना, 2019-20 की बैलेंस शीट में कर्ज की मान्यता को आधार बनाते हुए।

सुप्रीम कोर्ट ने IL&FS की IBC याचिका को समयबद्ध माना

सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई 2025 को एक अहम फैसले में कहा कि IL&FS Financial Services Ltd. द्वारा Adhunik Meghalaya Steels Pvt. Ltd. के खिलाफ IBC की धारा 7 के तहत दाखिल याचिका सीमावधि के भीतर दायर की गई थी। इससे पहले इस याचिका को NCLT और NCLAT दोनों ने अस्वीकार कर दिया था।

Read in English

यह मामला मुख्य रूप से इस बात पर केंद्रित था कि क्या वित्तीय वर्ष 2019-20 की बैलेंस शीट में दर्ज विवरण सीमा अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत कर्ज की वैध मान्यता (Acknowledgment of Debt) मानी जा सकती है।

“वित्तीय वर्ष 2019-20 की बैलेंस शीट, जब पिछले वर्षों के दस्तावेजों और परिस्थितियों के साथ पढ़ी जाती है, तो यह स्पष्ट रूप से कर्ज की मान्यता है।” — सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन

Read also:- दिल्ली हाई कोर्ट ने कैदी को पत्नी के प्रसव के लिए चार सप्ताह की पैरोल मंजूर की

मामला

IL&FS ने 27 फरवरी 2015 को Adhunik Meghalaya को ₹30 करोड़ का लोन दिया था, जो 8 लाख से अधिक शेयरों के प्लेज के माध्यम से सुरक्षित किया गया था। यह खाता 1 मार्च 2018 को एनपीए घोषित किया गया था। IL&FS ने 10 अगस्त 2018 को रिकॉल नोटिस भेजा, लेकिन भुगतान नहीं हुआ।

IL&FS ने 15 जनवरी 2024 को IBC की धारा 7 के तहत याचिका दाखिल की जिसमें ₹55 करोड़ से अधिक की बकाया राशि का दावा किया गया। याचिका में 2015–2020 की बैलेंस शीट और सुप्रीम कोर्ट के कोविड लिमिटेशन विस्तार आदेश (10 जनवरी 2022) का हवाला दिया गया।

Read also:- आपसी समझौते में उच्च न्यायालय द्वारा एफआईआर रद्द: गैर-समझौता योग्य मामलों में कानूनी अंतर्दृष्टि

हालांकि, NCLT (मई 2024) और NCLAT (मार्च 2025) ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि लिमिटेशन 30 मई 2022 को समाप्त हो गई थी, और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैरा 5(III) को लागू किया।

शीर्ष अदालत ने एक प्रसंगिक और उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए निम्न निष्कर्ष दिए:

  • 2019-20 की बैलेंस शीट में दिखाए गए secured borrowings पिछले वर्षों की तुलना में निरंतरता दर्शाते हैं।
  • भले ही कंपनी ने IL&FS का नाम नहीं लिखा, लेकिन वित्तीय आंकड़े और गारंटी की जानकारी कर्ज के बने रहने को दर्शाते हैं।
  • COVID अवधि (15 मार्च 2020 से 28 फरवरी 2022) को पैरा 5(I) के तहत पूरी तरह से बाहर रखा जाएगा, न कि पैरा 5(III) के तहत।
  • इस तरह, सीमा अवधि 28 फरवरी 2025 तक बढ़ जाती है और 15 जनवरी 2024 को दायर की गई याचिका समय के भीतर है।

Read also:- दिल्ली हाई कोर्ट ने कैदी को पत्नी के प्रसव के लिए चार सप्ताह की पैरोल मंजूर की

“बैलेंस शीट में किया गया उल्लेख एक मौजूदा देनदारी की मान्यता है, न कि कोई नया वादा।” — न्यायमूर्ति विश्वनाथन का स्पष्टीकरण

सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार किया, NCLT और NCLAT के फैसलों को रद्द कर दिया, और मामला दोबारा सुनवाई के लिए भेजा ताकि याचिका को मेरिट पर सुना जा सके।

मामले का शीर्षक: IL&FS फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड बनाम आधुनिक मेघालय स्टील्स प्राइवेट लिमिटेड

मामले का प्रकार: सिविल अपील

अपील संख्या: सिविल अपील संख्या 5787/2025

निर्णय तिथि: 29 जुलाई 2025