दिल्ली उच्च न्यायालय, जिसमें न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर शामिल हैं, ने पीईसी लिमिटेड की अपील को खारिज कर दिया है, तथा मध्यस्थता के फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें कंपनी को क्षतिग्रस्त कनाडाई मूल की लाल मसूर की दाल के विवाद में मेसर्स बद्री सिंह विनिमय प्राइवेट लिमिटेड को 10% वार्षिक ब्याज के साथ 5,67,864 रुपये वापस करने का निर्देश दिया गया था।
विवाद 2011 के एक टेंडर से शुरू हुआ था, जिसमें 300 मीट्रिक टन लाल मसूर दाल "जैसी है वैसी" (as is where is) आधार पर बेचने का प्रस्ताव था। प्रतिवादी कंपनी ने ₹25,500 प्रति एमटी की दर से बोली जीतकर ₹36 लाख से अधिक राशि, जिसमें earnest money भी शामिल थी, जमा की। हालांकि, खरीदार ने केवल "अच्छी और सही स्थिति" वाले माल को ही उठाने पर सहमति दी।
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फरवरी 2012 में संयुक्त तृतीय-पक्ष सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 70% मसूर दालें क्षतिग्रस्त या पानी से खराब थीं, जो मानव उपभोग के योग्य नहीं थीं। खरीदार ने केवल 111.28 एमटी सही गुणवत्ता वाला माल उठाया और शेष को अस्वीकार कर धनवापसी की मांग की। पीईसी ने टेंडर की शर्त का हवाला देते हुए अनुरोध खारिज कर दिया और earnest money जब्त कर ली।
एकमात्र मध्यस्थ ने माना कि सर्वेक्षण के दौरान आपसी सहमति से "जैसी है वैसी" की शर्त कमजोर हो गई थी और 382 बोरी अच्छे माल को न उठाने से हुए नुकसान की कटौती के बाद आंशिक धनवापसी का आदेश दिया। परिणामस्वरूप, परिणामी हर्जाने (consequential damages) के दावे को अस्वीकार कर दिया गया।
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वाणिज्यिक अदालत और हाईकोर्ट दोनों ने पाया कि यह निर्णय कारणयुक्त है और अनुबंध की शर्तों के अनुरूप है। न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर ने जोर देकर कहा कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत अपीलीय हस्तक्षेप सीमित है और मध्यस्थ के तथ्यों पर पुनर्मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
"निर्णय सुविचारित है, साक्ष्यों और संविदात्मक व्याख्या पर आधारित है, और इसमें कोई गैरकानूनीता या सार्वजनिक नीति से टकराव नहीं है," अदालत ने कहा।
केस का शीर्षक:- पीईसी लिमिटेड बनाम मेसर्स बद्री सिंह विनिमेय प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य।