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बड़ी पीठ को भेजे गए SC के निर्णय तब तक बाध्यकारी रहते हैं जब तक निर्देश न हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Shivam Y.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी निर्णय, जब तक उसे बड़ी पीठ द्वारा पलटा न जाए या कोई निर्देश न हो, तब तक बाध्यकारी बना रहता है। कोर्ट ने MSMED अधिनियम की पूर्व-डिपॉजिट शर्त की अनदेखी पर दायर याचिका खारिज कर दी।

बड़ी पीठ को भेजे गए SC के निर्णय तब तक बाध्यकारी रहते हैं जब तक निर्देश न हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्णय यदि बड़ी पीठ को भेजा गया हो, तो जब तक भेजने वाली अदालत कोई निर्देश न दे, वह निर्णय बाध्यकारी कानून बना रहता है।

न्यायमूर्ति मोक्ष खजूरिया काज़मी ने कहा:

“जब तक तमिलनाडु सीमेंट्स कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम MSEFC मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया संदर्भ बड़ी पीठ द्वारा तय नहीं किया जाता, मेसर्स इंडिया ग्लायकोल्स लिमिटेड में पारित निर्णय इस न्यायालय पर बाध्यकारी रहेगा।”

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यह मामला तब उठा जब जम्मू-कश्मीर की जल शक्ति विभाग ने पंजाब की MSEFC (सूक्ष्म और लघु उद्यम सुविधा परिषद) द्वारा पारित मध्यस्थता निर्णय को चुनौती दी। परिषद ने वर्ष 2018 में हुए आपूर्ति अनुबंधों के भुगतान में देरी के लिए M/S JTL Infra Ltd. को ₹2.75 करोड़ की मूल राशि और ₹8.77 करोड़ की ब्याज राशि प्रदान की थी।

याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत याचिका दाखिल की और तर्क दिया कि इंडिया ग्लायकोल्स लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बड़ी पीठ को भेजा गया है, इसलिए वह लागू नहीं होता।

हालांकि, हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि:

“केवल किसी निर्णय को बड़ी पीठ को संदर्भित करने मात्र से घोषित कानून अस्थिर नहीं हो जाता जब तक कोई स्पष्ट निर्देश न हो।”

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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि MSMED अधिनियम की धारा 19 के अनुसार, मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत किसी अवार्ड को चुनौती देने से पहले 75% राशि जमा करना अनिवार्य है। चूंकि याचिकाकर्ता ने इसका पालन नहीं किया, याचिका खारिज कर दी गई।

“अनुच्छेद 226/227 के तहत दायर याचिका, जो कि MSMED अधिनियम के अंतर्गत पारित अवार्ड को चुनौती देती है, सुनवाई योग्य नहीं है। याचिकाकर्ता को MSMED अधिनियम और मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम के अंतर्गत उचित कानूनी उपाय अपनाना होगा।”

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पृष्ठभूमि

यह विवाद 2018 में जल शक्ति विभाग द्वारा M/S JTL Infra Ltd. को आपूर्ति अनुबंध दिए जाने से शुरू हुआ। आंशिक भुगतान के बाद, शेष देनदारी पर विवाद उत्पन्न हुआ। कंपनी ने MSEFC के समक्ष ₹19.38 करोड़ की मांग रखी, जिसमें ₹2.75 करोड़ मूलधन और ₹8.77 करोड़ ब्याज था। परिषद ने 1 जून 2023 को अवार्ड पारित किया और भविष्य के लिए भी ब्याज देने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता ने यह अवार्ड चुनौती दी, परंतु विधिसम्मत पूर्व-डिपॉजिट के बिना, जिस पर कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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निर्णय में कही गई बात:

“हाईकोर्ट्स को वर्तमान कानून के अनुसार मामलों का निपटारा करना चाहिए। जब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष रूप से निर्देशित न किया जाए, तब तक किसी संदर्भ या पुनर्विचार की प्रतीक्षा करना उचित नहीं।”

मामले का शीर्षक :संघ राज्य क्षेत्र जम्मू-कश्मीर व अन्य बनाम M/S JTL इंफ्रा लिमिटेड, 2025

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