Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

दिल्ली हाईकोर्ट: धारा 12(5) के तहत एकतरफा मध्यस्थ नियुक्ति के लिए लिखित छूट के बिना मध्यस्थता पुरस्कार अमान्य

Shivam Y.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी पक्ष ने एकपक्षीय रूप से मध्यस्थ नियुक्त किया हो, तब भी वह पक्ष धारा 12(5) के तहत उस नियुक्ति को चुनौती दे सकता है, बशर्ते कि कोई लिखित छूट (waiver) न दी गई हो। यह निर्णय मध्यस्थ की निष्पक्षता सुनिश्चित करने पर बल देता है।

दिल्ली हाईकोर्ट: धारा 12(5) के तहत एकतरफा मध्यस्थ नियुक्ति के लिए लिखित छूट के बिना मध्यस्थता पुरस्कार अमान्य

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पक्ष एकपक्षीय रूप से किसी मध्यस्थ की नियुक्ति करता है, तब भी वह पक्ष धारा 12(5) के तहत उस नियुक्ति को चुनौती देने से वंचित नहीं होता, यदि उसने कोई स्पष्ट लिखित छूट (express written waiver) न दी हो। न्यायमूर्ति तेजस करिया और न्यायमूर्ति विभू बखरू की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की नियुक्ति, भले ही चुनौती देने वाले पक्ष ने की हो, तब भी बिना लिखित छूट के अवैध मानी जाएगी।

Read In English

"एकपक्षीय नियुक्ति के कारण निर्णय अमान्य होने की आपत्ति पहली बार धारा 34 की कार्यवाही में उठाई जा सकती है," न्यायालय ने कहा, यह रेखांकित करते हुए कि एक अपात्र मध्यस्थ द्वारा दिया गया निर्णय लागू नहीं किया जा सकता।

Read also:- स्वप्रेरणा जनहित याचिका: केरल उच्च न्यायालय ने आईएचआरडी निदेशक की नियुक्ति की वैधता पर सवाल उठाया

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एम/एस महावीर प्रसाद गुप्ता एंड सन्स और दिल्ली सरकार (एनसीटी) के बीच रोड नं. 58 (महाराजा सूरजमल मार्ग) के सुदृढ़ीकरण कार्य से जुड़ा था। 2014 में ₹5.16 करोड़ का ठेका मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने कार्य 2015 में पूर्ण किया। परंतु, गुणवत्ता जांच में सड़क की मोटाई मानकों से कम पाई गई, जिसके कारण भुगतान रोक दिया गया।

IIT रुड़की और PWD की संयुक्त ऑडिट में कार्य को संतोषजनक पाया गया, फिर भी अंतिम भुगतान नहीं किया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता का सहारा लिया और प्रतिवादी (दिल्ली सरकार) ने एकतरफा रूप से एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया। मध्यस्थ ने ₹1.76 करोड़ का पुरस्कार याचिकाकर्ता के पक्ष में दिया, जिसे बाद में वाणिज्यिक न्यायालय ने अपात्र नियुक्ति के आधार पर रद्द कर दिया।

Read also:- न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने कॉलेजियम सिफारिशों में देरी करने वाली ‘बाहरी ताकतों’ की आलोचना की, न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता की मांग की

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि प्रतिवादी ने मध्यस्थ की नियुक्ति का कभी विरोध नहीं किया और धारा 29A के तहत उसके कार्यकाल को बढ़ाने पर भी सहमति दी। इस आधार पर उन्हें बाद में नियुक्ति को चुनौती देने का अधिकार नहीं है।

परंतु, प्रतिवादी का तर्क था कि याचिकाकर्ता ने धारा 12(5) के तहत कोई लिखित छूट नहीं दी, इसलिए नियुक्ति अपात्र थी और निर्णय शून्य (null and void) है।

उच्च न्यायालय ने पर्किन्स ईस्टमैन, भारत ब्रॉडबैंड और कोर जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों का पालन करते हुए कहा:

"धारा 12(5) के अंतर्गत छूट केवल स्पष्ट लिखित सहमति के माध्यम से दी जा सकती है। मात्र कार्यवाही में भाग लेना या मौन सहमति देना वैध नहीं माना जाएगा।"

Read also:- केरल उच्च न्यायालय: यदि 153A/153C नोटिस लंबित है तो निपटान आवेदन वैध है - पूर्व पात्रता कट-ऑफ की कोई आवश्यकता नहीं

न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में न्यायालय स्वयं भी सुओ मोटो (स्वप्रेरणा से) निर्णय को धारा 34(2)(b) के तहत भारत की सार्वजनिक नीति के विरुद्ध मानकर रद्द कर सकता है।

"मध्यस्थता की प्रक्रिया न्यायिक प्रकृति की होती है और दोनों पक्षों को समान अधिकार मिलने चाहिए। एक पक्ष को मध्यस्थ नियुक्त करने का एकपक्षीय अधिकार देना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है," न्यायालय ने कहा।

एम/एस महावीर प्रसाद गुप्ता एंड सन्स द्वारा दायर अपील को खारिज कर वाणिज्यिक न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा गया।

मामले का शीर्षक: एम/एस महावीर प्रसाद गुप्ता एंड सन्स बनाम दिल्ली सरकार (एनसीटी)

मामला संख्या: FAO (COMM) 170/2023

निर्णय तिथि: 31 मई 2025

अधिवक्ता: याचिकाकर्ता की ओर से श्री एम.के. घोष एवं श्रीमती टीना गर्ग; प्रतिवादी की ओर से श्री तुषार सन्नू एवं श्रीमती अंखिता भदौरिया

Advertisment

Recommended Posts