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2019 के चुनावों के दौरान शांतिपूर्ण छात्र विरोध प्रदर्शन को लेकर मांचू बाबू के खिलाफ दर्ज FIR SC ने रद्द की

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने मनचू मोहन बाबू और उनके बेटे के खिलाफ 2019 के प्रदर्शन रैली से जुड़े FIR को रद्द किया, कहा – IPC या पुलिस एक्ट के तहत कोई अपराध नहीं बनता। पूरी जानकारी पढ़ें।

2019 के चुनावों के दौरान शांतिपूर्ण छात्र विरोध प्रदर्शन को लेकर मांचू बाबू के खिलाफ दर्ज FIR SC ने रद्द की

सुप्रीम कोर्ट ने तेलुगु अभिनेता और शिक्षाविद मनचू मोहन बाबू और उनके बेटे मनचू विष्णु वर्धन बाबू के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। यह कार्यवाही 2019 के एक प्रदर्शन रैली में भाग लेने के लिए की गई थी।

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पृष्ठभूमि:

यह प्रदर्शन 22 मार्च 2019 को हुआ था, जिसमें याचिकाकर्ता और छात्रों का एक समूह तिरुपति-मदनपल्ली रोड पर एक रैली और धरना आयोजित किया था। वे आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्टूडेंट फीस रीइंबर्समेंट न देने पर नारेबाज़ी कर रहे थे। यह प्रदर्शन सुबह 8:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक चला।

FIR में दर्ज था कि इस प्रदर्शन ने ट्रैफिक बाधित की और जनता को असुविधा हुई। यह सब मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के दौरान हुआ, और आरोपियों ने कोई पूर्व अनुमति नहीं ली थी। मंडल परिषद विकास अधिकारी द्वारा शिकायत दी गई, और FIR संख्या 102/2019 दर्ज की गई।

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याचिकाकर्ताओं पर निम्नलिखित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया:

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने जनवरी 2025 में मामला खारिज करने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं पर विशेष आरोप हैं और मामला रद्द करने का कोई ठोस आधार नहीं है। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने FIR और चार्जशीट का गहन अध्ययन किया और पाया कि किसी भी आरोप में अपराध का घटक नहीं बनता।

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“याचिकाकर्ता केवल अपने भाषण और शांतिपूर्ण सभा के अधिकार का प्रयोग कर रहे थे। अगर सभी आरोप सच माने जाएं तब भी कोई अपराध नहीं बनता।” – सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने भजनलाल केस और Pepsico बनाम विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट जैसे मामलों का हवाला दिया और कहा:

“यदि FIR में दर्ज आरोप संज्ञेय अपराध नहीं दर्शाते, तो न्याय प्रक्रिया के दुरुपयोग से बचने हेतु कार्यवाही रद्द की जानी चाहिए।”

  • मौलिक अधिकार की सुरक्षा: शांतिपूर्ण प्रदर्शन भारतीय संविधान द्वारा संरक्षित है।
  • अपराध का कोई इरादा नहीं: किसी तरह की जबरदस्ती या दंगे का कोई साक्ष्य नहीं मिला।
  • कानून का गलत इस्तेमाल: जो धाराएं लगाई गईं, वे तथ्यों से मेल नहीं खातीं।
  • हाईकोर्ट की भूल: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने सही कानूनी परीक्षण नहीं किया।

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सुप्रीम कोर्ट ने दोनों अपीलों को स्वीकार किया, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को रद्द किया और आदेश दिया कि:

  • FIR संख्या 102/2019
  • कार्यवाही C.C. संख्या 1015/2021

को पूरी तरह रद्द किया जाए

“इस प्रकार की कार्यवाही को जारी रखना न्याय के हित में नहीं है।” – सुप्रीम कोर्ट पीठ

केस का शीर्षक: मंचू मोहन बाबू एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य

अपील संख्याएँ: आपराधिक अपील संख्या 3298/2025 और आपराधिक अपील संख्या 3299/2025 (विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक अपील) संख्या 5247 और 8623/2025 से उत्पन्न)

निर्णय की तिथि: 31 जुलाई 2025

ट्रायल कोर्ट केस संख्या: सी.सी. संख्या 1015/2021