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MP टोलवे विवाद में SC ने निजी मध्यस्थता रद्द की; राज्य ट्राइब्यूनल में केस फिर से बहाल करने का निर्देश

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने उमरी पूफ प्रतापपुर टोलवेज़ प्रा. लि. की ICADR के तहत मध्यस्थता को खारिज कर दिया, और कहा कि ठेका विवाद का निपटारा केवल मध्य प्रदेश मध्यस्थम अधिकरण के माध्यम से ही हो सकता है।

MP टोलवे विवाद में SC ने निजी मध्यस्थता रद्द की; राज्य ट्राइब्यूनल में केस फिर से बहाल करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने 30 जुलाई 2025 को उमरी पूफ प्रतापपुर (UPP) टोलवेज़ प्रा. लि. बनाम म.प्र. रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन मामले में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ किया कि 1996 के मध्यस्थता और सुलह अधिनियम के तहत निजी मध्यस्थता, मध्य प्रदेश मध्यस्थम अधिकरण अधिनियम, 1983 के तहत बनाए गए वैधानिक मंच को दरकिनार नहीं कर सकती।

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कोर्ट ने UPP टोलवेज़ द्वारा ICADR के समक्ष शुरू की गई मध्यस्थता कार्यवाही को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया और कंपनी को निर्देश दिया कि वह 2018 में मध्यस्थम अधिकरण के समक्ष दाखिल रेफरेंस केस नं. 61 को बहाल करने के लिए आवेदन करे।

विवाद की पृष्ठभूमि

UPP टोलवेज़ ने 5 जनवरी 2012 को एक रियायत समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत BOT (टोल + वार्षिक भुगतान) मॉडल के तहत उमरी–पूफ–प्रतापपुर सड़क का निर्माण करना था। परियोजना की लागत ₹73.68 करोड़ थी। लेकिन परियोजना में देरी और तकनीकी अड़चनों के चलते विवाद हुआ और कंपनी ने ₹280.15 करोड़ के दावे दाखिल किए।

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शुरुआत में अपीलकर्ता ने 2018 में एमपी मध्यस्थम अधिकरण में याचिका दाखिल की, लेकिन बाद में केस वापस ले लिया और 2022 में ICADR के माध्यम से मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू की

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 9 सितंबर 2024 को ICADR में चल रही मध्यस्थता को रद्द कर दिया और कहा कि ऐसे ‘वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट’ से संबंधित विवादों को केवल एमपी मध्यस्थम अधिकरण ही सुन सकता है।

"1983 अधिनियम की धारा 7 स्पष्ट रूप से कहती है कि कोई भी पक्ष, चाहे समझौते में मध्यस्थता का प्रावधान हो या न हो, विवाद को ट्राइब्यूनल के पास ही भेजेगा," सुप्रीम कोर्ट ने कहा।

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  1. निजी मध्यस्थता अवैध:
    कोर्ट ने कहा कि रियायत समझौता "वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट" की श्रेणी में आता है, और ऐसे मामलों पर केवल एमपी मध्यस्थम अधिकरण का क्षेत्राधिकार है।
  2. वैधानिक मंच सर्वोपरि:
    कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों की आपसी सहमति के बावजूद, यदि कानून कोई विशेष मंच निर्धारित करता है, तो उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।
  3. अनुमति के बिना केस वापस लेना अंतिम होता है:
    UPP ने 2023 में केस वापस लिया था लेकिन पुनः दायर करने की अनुमति नहीं ली, जिससे दोबारा वही दावा किसी और मंच पर करना निषिद्ध हो गया।
  4. दोहरी कार्यवाही अवैध:
    कोर्ट ने कहा कि एक ही मुद्दे पर दो अलग-अलग मंचों पर कार्यवाही करना कानून के खिलाफ है और इसे फोरम शॉपिंग माना जाएगा।
  5. रिट याचिका योग्य:
    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य का उपक्रम अपने वैधानिक अधिकारों की रक्षा हेतु हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकता है।

"अपीलकर्ता का आचरण, जिसमें वह वैधानिक प्रक्रिया से बचने की कोशिश कर रहा है और बंद हो चुके दावों को दोबारा ज़िंदा करने की कोशिश कर रहा है, दुर्भावनापूर्ण है," कोर्ट ने टिप्पणी की।

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हालांकि UPP ने बिना अनुमति के केस वापस लिया था, फिर भी न्याय के हित में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 8 फरवरी 2023 के वापसी आदेश को वापस लेने के लिए मध्य प्रदेश मध्यस्थम अधिकरण में दो सप्ताह के भीतर आवेदन कर सकता है।

ट्राइब्यूनल को निर्देश दिया गया है कि वह इस आवेदन पर दो सप्ताह के भीतर फैसला करे और यदि केस बहाल होता है, तो चार महीने के भीतर मामले का निपटारा करे।

मामले का नाम: उमरी पूफ प्रतापपुर टोलवेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सिविल अपील संख्या 5649/2024)