एक महत्वपूर्ण फैसले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक आदमी के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को खारिज कर दिया, जिस पर एक महिला को झूठे शादी के वादे के तहत यौन शोषण का आरोप था। कोर्ट ने कहा कि 16 साल के सहमति वाले रिश्ते को रेप नहीं माना जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो कि आरोपी ने शुरुआत से ही शादी का झूठा वादा किया था। 3 मार्च, 2025 को जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि शिकायतकर्ता, एक उच्च शिक्षित और स्थापित महिला, ने एक दशक से अधिक समय तक यौन शोषण की शिकायत नहीं की, जिससे उसके दावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
मामले की पृष्ठभूमि:
मामला रजनीश सिंह @ सोनी के इर्द-गिर्द घूम रहा था, जिस पर शिकायतकर्ता, एक महिला के साथ 16 साल के लंबे रिश्ते के दौरान यौन शोषण का आरोप लगाया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे शादी के झूठे वादे के तहत बार-बार यौन शोषण किया। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि रिश्ता सहमति से था और आरोप तब लगाए गए जब आरोपी ने दूसरी महिला से शादी कर ली।
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2022 में दर्ज FIR में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार), 384 (जबरन वसूली), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 504 (जानबूझकर अपमान करना), और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि आरोपी ने 2006 में उसके साथ यौन शोषण किया और शादी के वादे के बहाने उसका शोषण जारी रखा। हालांकि, कोर्ट ने नोट किया कि शिकायतकर्ता ने 16 साल तक यौन शोषण की शिकायत नहीं की और FIR तभी दर्ज की गई जब आरोपी ने दूसरी महिला से शादी कर ली।
कोर्ट ने शिकायतकर्ता के दावों पर संदेह जताया और कहा कि यह "मानना मुश्किल है" कि एक उच्च शिक्षित और स्थापित महिला 16 साल तक बिना किसी विरोध के यौन शोषण की शिकार बनी रही। कोर्ट ने कहा:
"यह मानना लगभग असंभव है कि शिकायतकर्ता ने पूरे 16 साल तक आरोपी को बिना किसी रोक-टोक के यौन संबंध बनाने की अनुमति दी, यह सोचकर कि आरोपी किसी दिन शादी का वादा पूरा करेगा।"
कोर्ट ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच लंबे समय तक सहमति वाला रिश्ता था, जिसके दौरान उन्होंने अनौपचारिक रूप से शादी के रीति-रिवाज भी किए। कोर्ट ने महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य और प्रशांत बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली जैसे पूर्व के फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि लंबे समय तक चलने वाले सहमति वाले रिश्ते को झूठे शादी के वादे के आधार पर रेप नहीं माना जा सकता, जब तक कि शुरुआत से ही धोखे का सबूत न हो।
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वादे का उल्लंघन और झूठा वादा:
कोर्ट ने वादे का उल्लंघन और झूठा वादा के बीच अंतर स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी को रेप के लिए तभी दोषी ठहराया जा सकता है, जब यह साबित हो कि उसने शुरुआत से ही शिकायतकर्ता से शादी करने का कोई इरादा नहीं रखा था। कोर्ट ने दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य के फैसले का हवाला दिया:
"सहमति या तो स्पष्ट या अस्पष्ट हो सकती है, जबरदस्ती या गुमराह करके प्राप्त की जा सकती है। सहमति एक तर्कसंगत कार्य है, जिसमें मन अच्छे और बुरे के बीच तुलना करता है। बलात्कार और सहमति से यौन संबंध के बीच स्पष्ट अंतर है।"
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता ने कई बार खुद को आरोपी की पत्नी बताया, जिससे उसके दावे कमजोर हो गए कि रिश्ता झूठे शादी के वादे पर आधारित था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए FIR और संबंधित सभी कार्यवाही को खारिज कर दिया। यह फैसला इस सिद्धांत की पुष्टि करता है कि लंबे समय तक चलने वाले सहमति वाले रिश्ते को रेप नहीं माना जा सकता, जब तक कि शुरुआत से ही दुर्व्यवहार का इरादा साबित न हो।
केस का शीर्षक: रजनीश सिंह @ सोनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य