दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि लंबे समय तक सहमति से बना शारीरिक संबंध यह साबित नहीं करता कि यह संबंध केवल विवाह के झूठे वादे के आधार पर बना था। न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने यह फैसला सुनाते हुए उस व्यक्ति की 10 साल की सजा को रद्द कर दिया, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 366 (अपहरण) और धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि बलात्कार के मामले में दोषसिद्धि के लिए यह साबित होना आवश्यक है कि आरोपी ने शुरुआत से ही धोखाधड़ी से विवाह का वादा किया था और महिला की सहमति केवल इस झूठे वादे के कारण थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला उस समय सामने आया जब एक व्यक्ति ने एफआईआर दर्ज कराई कि उसकी 20 वर्षीय बेटी लापता है और उसे संदेह था कि वह 18.5 साल के युवक के साथ गई है। बाद में, दोनों हरियाणा में मिले और युवक को गिरफ्तार कर लिया गया।
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अभियोग पक्ष का तर्क था कि शारीरिक संबंध विवाह के वादे के आधार पर बनाए गए, जिसे पूरा करने की आरोपी की कोई मंशा नहीं थी। निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई।
अदालत के अवलोकन
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने मामले की गहन जांच करने के बाद पाया कि यह संबंध प्यार और आपसी सहमति पर आधारित था, न कि किसी प्रकार की धोखाधड़ी या दबाव पर।
"यदि विवाह का वादा ईमानदारी से किया गया था, लेकिन कुछ अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण पूरा नहीं हो सका, तो इसे झूठा वादा नहीं कहा जा सकता और ना ही इसे बलात्कार का अपराध माना जा सकता।"
इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा:
"यदि कोई संबंध लंबे समय तक आपसी सहमति से चलता है, तो इसे केवल विवाह के वादे पर आधारित सहमति नहीं माना जा सकता।"
अदालत ने महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024 SCC OnLine SC 3471) के मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई दीर्घकालिक संबंध खराब होता है, तो इसे बलात्कार का मामला नहीं बनाया जाना चाहिए।
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इस निर्णय में आईपीसी की धारा 90 का उल्लेख किया गया, जो किसी भी गलत धारणा के तहत दी गई सहमति को अवैध मानती है। अदालत ने झूठे विवाह वादे और विवाह के वादे को पूरा न कर पाने के बीच अंतर स्पष्ट किया:
झूठा विवाह वादा: जब व्यक्ति शुरू से ही शादी करने की कोई मंशा नहीं रखता और केवल महिला को धोखा देने के लिए वादा करता है।
विवाह का वादा निभाने में असमर्थता: जब व्यक्ति ने ईमानदारी से विवाह का वादा किया, लेकिन कुछ परिस्थितियों के कारण उसे पूरा नहीं कर सका।
सुप्रीम कोर्ट ने दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य (2013) के मामले में कहा था:
"यदि आरोपी ने विवाह का झूठा वादा केवल अपनी वासना पूरी करने के लिए किया था, तो इसे बलात्कार माना जा सकता है। लेकिन यदि संबंध प्रेम, आपसी सहमति और विवाह की वास्तविक इच्छा पर आधारित था, तो बाद में विवाह न हो पाने को बलात्कार नहीं माना जा सकता।"
अदालत ने सबूतों और गवाहों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि महिला और आरोपी एक वर्ष से अधिक समय तक सहमति से संबंध में थे। मामले में ऐसा कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं था, जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी का विवाह करने का कोई इरादा नहीं था। इसके अलावा, पीड़िता को यह पहले से ज्ञात था कि जातिगत मतभेदों के कारण विवाह कठिन होगा। निचली अदालत द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह संबंध झूठे विवाह वादे पर आधारित था, लेकिन यह मजबूत सबूतों द्वारा समर्थित नहीं था।
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इसलिए, अदालत ने आरोपी की सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।
हालांकि, अदालत ने आरोपी को सख्त चेतावनी दी:
"आरोपी सुनिश्चित करे कि न तो वह और न ही उसके परिवार का कोई सदस्य पीड़िता या उसके परिवार के जीवन में कोई दखल दे और न ही किसी भी माध्यम से उनसे संपर्क करे – चाहे वह व्हाट्सएप हो, मोबाइल हो या कोई अन्य तरीका।"
Title: SHIVAM PANDEY v. STATE