आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी महिला को बच्चा न होने पर ताना देना भारतीय दंड संहिता की धारा 498A या दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धाराओं 3 और 4 के तहत "क्रूरता" नहीं माना जा सकता। अदालत ने इस आधार पर पति की शादीशुदा बहनों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति हरिनाथ एन ने 24 अप्रैल 2025 को पारित आदेश में पाया कि याचिकाकर्ता 3 और 4 (पति की बहनें) शादी के बाद से अलग शहर में रह रही थीं और वे न तो शिकायतकर्ता (पत्नी) के साथ रहती थीं और न ही उसके वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करती थीं। न्यायालय ने कहा:
"याचिकाकर्ता 3 और 4 अपने विवाह के तुरंत बाद अलग रह रहे थे और इस तरह से शिकायतकर्ता को प्रताड़ित करने का कोई अवसर नहीं था... तानों के ऐसे सामान्य आरोप, जिनमें तिथि या समय का कोई स्पष्ट विवरण नहीं है, कानून की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।"
इस मामले में पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ क्रूरता और दहेज मांगने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन पुलिस जांच में दर्ज 10 गवाहों में से किसी ने भी पति की बहनों के खिलाफ कोई ठोस आरोप नहीं लगाया।
अदालत ने साफ कहा कि यदि ताने दिए भी गए हों, तो भी यह धारा 498A या दहेज निषेध अधिनियम की धाराओं 3 और 4 के तहत अपराध का आधार नहीं बनता:
"संतान न होने पर ताना देना, अभियोग जारी रखने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।"
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में कभी-कभी शिकायतकर्ता सिर्फ बदला लेने के लिए परिवार के दूर के रिश्तेदारों को भी फंसाते हैं:
"यह मामला भी ऐसा ही है जहां मुख्य आरोपी से असंबंधित रिश्तेदारों को केवल प्रतिशोध के लिए फंसाया गया है।"
न्यायमूर्ति हरिनाथ ने माना कि यदि ऐसे मामलों को आगे बढ़ाया गया तो इससे निर्दोष लोगों को केवल अनावश्यक उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा। इसी आधार पर न्यायालय ने याचिकाकर्ता 3 और 4 के खिलाफ लंबित फौजदारी मामला (सीसी संख्या 623/2022) को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए समाप्त कर दिया।