धर्मांतरण मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने FIR रद्द की, पुलिस को फटकार और आरोपी की तत्काल रिहाई का आदेश

By Vivek G. • November 3, 2025

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण आरोपों वाली एफआईआर रद्द की, पुलिस को फटकार लगाई और आरोपी की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।

गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट लखनऊ पीठ में सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट और तीखी टिप्पणियों के साथ एक बहुचर्चित मामले में एफआईआर को रद्द कर दिया। यह मामला बहराइच की एक महिला के कथित अपहरण और जबरन धर्मांतरण से जुड़ा था। न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन और न्यायमूर्ति बबीता रानी की पीठ ने कहा कि यह मामला “राज्य अधिकारियों द्वारा अंक बटोरने की कोशिश” का उदाहरण है, जबकि पीड़िता ने स्वयं आरोपों को गलत बताया था।

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पृष्ठभूमि

यह मामला उस समय शुरू हुआ जब पंकज कुमार वर्मा ने शिकायत दर्ज कराई कि उनकी पत्नी वंदना वर्मा को याचिकाकर्ताओं ने बहला-फुसलाकर ले लिया और वे “धर्मांतरण गिरोह” चलाते हैं। एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 140(1) के तहत दर्ज की गई, जो हत्या के उद्देश्य से अपहरण या खतरनाक बंधन से संबंधित है। बाद में इसमें धार्मिक धर्मांतरण विरोधी कानून के आरोप भी जोड़ दिए गए।

हालांकि, कुछ दिनों बाद वंदना वापस लौटीं और पुलिस को दिए अपने बयान में स्पष्ट कहा कि वह घरेलू हिंसा के कारण अपने घर से स्वयं गई थीं। 19 सितंबर को दिए गए बयान में उन्होंने कहा, “मेरा पति मुझे नियमित रूप से मारता है। मैं अपनी इच्छा से घर छोड़ी थी। किसी ने मेरा धर्मांतरण नहीं कराया।”

इसके बावजूद, आरोपितों में से एक, उमेद @ उबैद ख़ा को एक महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया।

अदालत की टिप्पणियाँ

पीठ ने अधिकारियों के आचरण पर सख्त नाराज़गी व्यक्त की। अदालत ने कहा कि वंदना के बयान साफ-साफ दिखाते हैं कि न तो अपहरण हुआ और न ही धर्मांतरण, फिर भी पुलिस ने कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया।

पीठ ने टिप्पणी की, “जब पीड़िता का बयान स्पष्ट रूप से बता रहा था कि कोई अपराध नहीं हुआ है, तब अधिकारियों को आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए थी। इसके विपरीत, याचिकाकर्ता अब भी जेल में है।”

अदालत ने कहा कि धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत गंभीर सजा केवल अनुमान के आधार पर नहीं लगाई जा सकती। अदालत ने यह भी कहा कि आपराधिक भरोसा भंग से जुड़े प्रावधान (धारा 316(2) और 317(2), BNS) गिरफ्तारी को उचित नहीं ठहराते।

पुलिस की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि राज्य ने “रिकॉर्ड में स्पष्ट सच्चाई होते हुए भी कानून लागू करने में विफलता दिखाई।”

निर्णय

अदालत ने संबंधित एफआईआर और सभी कानूनी कार्यवाही को रद्द कर दिया और आदेश दिया कि उमेद को तुरंत रिहा किया जाए, यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है। साथ ही, अदालत ने उत्तर प्रदेश राज्य पर ₹75,000 का दंड लगाया। इसमें से ₹50,000 उमेद को और ₹25,000 अदालत की कानूनी सहायता सेवा के खाते में जमा करने का निर्देश दिया गया।

आदेश इसी बिंदु पर समाप्त किया गया।

Case Title: Umed @ Ubaid Kha & Others vs State of Uttar Pradesh & Others

Court: Hon’ble Justice Abdul Moin & Hon’ble Justice Babita Rani

Allahabad High Court, Lucknow Bench

Order dated: 30 October 2025

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