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दिल्ली हाई कोर्ट ने 27 औद्योगिक क्षेत्रों में सीवरेज और नालों की कमी पर कड़ा रुख, वरिष्ठ अधिकारियों को कार्रवाई योजना के साथ तलब किया

Vivek G.

दिल्ली हाई कोर्ट ने 27 औद्योगिक क्षेत्रों में सीवरेज और ड्रेनेज की कमी पर चिंता जताई, शीर्ष अधिकारियों को संयुक्त कार्ययोजना प्रस्तुत करने का आदेश दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 27 औद्योगिक क्षेत्रों में सीवरेज और नालों की कमी पर कड़ा रुख, वरिष्ठ अधिकारियों को कार्रवाई योजना के साथ तलब किया

दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति प्रभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने राजधानी के 27 औद्योगिक क्षेत्रों के पुनर्विकास में शामिल सरकारी एजेंसियों के कामकाज पर खुलकर नाराज़गी जताई। यह मामला, जिसे अदालत ने स्वयं संज्ञान में लिया था, एक बार फिर इस तथ्य को सामने लाया कि कई औद्योगिक इलाकों में आज भी मूलभूत नागरिक सुविधाएँ जैसे सीवरेज लाइनें और स्टॉर्म वॉटर ड्रेन्स मौजूद ही नहीं हैं-जबकि उनमें रोज़ बड़ी संख्या में उद्योग चल रहे हैं।

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पृष्ठभूमि

मामला लगातार आने वाली शिकायतों-जैसे प्रदूषण, जलभराव और बिना उपचार के औद्योगिक अपशिष्ट के यमुना में जाने-से जुड़ा है। करीब दो साल पहले दिल्ली कैबिनेट ने पुनर्विकास योजना को मंज़ूरी दी थी और निजी सलाहकार एजेंसियों को सर्वे और पुनर्विकास प्लान तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। लेकिन सुनवाई से साफ हुआ कि ज़्यादातर काम कागज़ों से आगे बढ़ा ही नहीं।

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दिल्ली जल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत स्थिति रिपोर्ट में बताया गया कि तीन निजी आर्किटेक्ट-कंसल्टेंट फर्मों को यह काम सौंपा गया था। हालांकि, जैसा कि अदालत ने नोट किया, कुछ क्षेत्रों का केवल सर्वे हुआ है, न तो रिपोर्टें पूरी हैं और न ही वास्तविक निर्माण या विकास कार्य शुरू हुआ है।

इसी दौरान दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) को जी.टी. करनाल रोड औद्योगिक क्षेत्र में उद्योगों की जाँच कर रिपोर्ट देने को कहा गया था। लेकिन वह रिपोर्ट भी "आपत्ति" के कारण अदालत तक नहीं पहुँच पाई।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान पीठ ने पर्यावरणीय परिणामों पर गंभीर चिंता जताई। DSIIDC, DJB, MCD, DPCC, DDA और GNCTD के वकीलों की मौजूदगी के बावजूद यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि ज़िम्मेदारी किसकी है।

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पीठ ने कहा कि “मूलभूत सुविधाएँ-सीवरेज लाइनें और स्टॉर्म वॉटर ड्रेन्स-इन क्षेत्रों में हैं ही नहीं।” अदालत ने यह भी कहा कि जब उद्योग चल रहे हैं तो अपशिष्ट जल कहीं तो जा रहा होगा और यदि कोई उपचार प्रणाली नहीं है तो वह सीधे भूजल या यमुना में जा रहा है।

एक जज ने स्पष्ट रूप से कहा:
“उद्योग चल रहे हैं। अपशिष्ट जल बाहर जा रहा होगा। यदि सीवेज और ड्रेनेज प्रणाली नहीं है, तो यह स्पष्ट रूप से भूजल को प्रदूषित कर रहा है। यह स्थिति चिंताजनक है।”

अदालत ने यह भी पाया कि DPCC और DSIIDC के आंकड़ों में भारी विरोधाभास है - जिससे यह सवाल और गंभीर हो जाता है कि निगरानी वास्तव में हो भी रही है या नहीं। अदालत ने कहा कि 2023 की कैबिनेट मीटिंग में फैसले हो चुके थे, लेकिन अब तक केवल सर्वे एजेंसियों की नियुक्ति ही दिख रही है। रिपोर्टें तक तैयार नहीं हैं।

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निर्णय

स्थिति की गंभीरता और विभागों के बीच ज़िम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति को देखते हुए अदालत ने अगले सुनवाई दिवस पर वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति अनिवार्य कर दी। बुलाए गए अधिकारियों में शामिल हैं:

  • दिल्ली के मुख्य सचिव
  • उद्योग विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव
  • DSIIDC के प्रबंध निदेशक
  • MCD के आयुक्त
  • DPCC के सचिव

अदालत ने निर्देश दिया कि ये अधिकारी 10 नवंबर 2025 तक बैठक कर 15 नवंबर 2025 तक एक संयुक्त कार्ययोजना रिपोर्ट दाखिल करें।

यदि रिपोर्ट संतोषजनक नहीं हुई, तो सभी अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से अदालत उपस्थित होना होगा।
अगर रिपोर्ट उचित हुई, तो उन्हें वर्चुअल माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति होगी।

अब यह मामला 22 नवंबर 2025 को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

Case: Delhi High Court Summons Top Officials Over Lack of Sewage and Drainage in 27 Industrial Areas

Court: High Court of Delhi, New Delhi

Bench: Justice Prathiba M. Singh and Justice Manmeet Pritam Singh Arora

Case Type: Court on its Own Motion (Suo Motu Public Interest)

Next Hearing Date: 22 November 2025.

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