Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

बस परमिट उल्लंघन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा “पे एंड रिकवर” नियम, के. नागेन्द्र की अपील खारिज

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक बस दुर्घटना मामले में “पे एंड रिकवर” नियम बरकरार रखा, बीमा कंपनी को पहले मुआवजा देने और बाद में मालिक से वसूली का आदेश।

बस परमिट उल्लंघन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा “पे एंड रिकवर” नियम, के. नागेन्द्र की अपील खारिज

29 अक्टूबर 2025 को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने के. नागेन्द्र द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। यह अपील कर्नाटक के चन्नपटना में हुई एक सड़क दुर्घटना से संबंधित थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें “पे एंड रिकवर” सिद्धांत लागू किया गया था - यानी बीमा कंपनी पहले पीड़ित परिवार को मुआवजा देगी और बाद में वह राशि बस मालिक से वसूल सकेगी।

Read in English

पृष्ठभूमि

यह मामला 2014 की एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें श्रीनिवास उर्फ मुरली नामक व्यक्ति की मौत हो गई थी। उन्हें एक बस ने लापरवाही से टक्कर मारी थी। मृतक के परिजनों ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) में ₹50 लाख मुआवजे की मांग की थी, यह कहते हुए कि मृतक परिवार का एकमात्र कमाने वाला था और ₹15,000 प्रति माह की आय अर्जित करता था।

Read also:- EPC कंस्ट्रक्शंस बनाम मेटिक्स: सुप्रीम कोर्ट ने कहा प्रेफरेंस शेयरहोल्डर वित्तीय ऋणदाता नहीं

अधिकरण ने शुरुआती तौर पर मृतक की आय ₹8,000 प्रतिमाह मानकर ₹18.86 लाख मुआवजा 6% वार्षिक ब्याज सहित तय किया। इससे असंतुष्ट होकर मृतक के परिवार ने मुआवजा बढ़ाने की मांग की, जबकि बीमा कंपनी ने यह कहते हुए आदेश को चुनौती दी कि बस अपने निर्धारित मार्ग से हटकर चल रही थी।

2019 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने मृतक की आय पुनर्मूल्यांकित कर ₹31.84 लाख का मुआवजा तय किया, लेकिन यह स्वीकार किया कि बस बेंगलुरु–मैसूर मार्ग से हटकर चन्नपटना शहर में प्रवेश कर गई थी। अदालत ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह “पे एंड रिकवर” सिद्धांत के अनुसार पहले मुआवजा चुकाए और बाद में बस मालिक से राशि वसूल करे।

कोर्ट के अवलोकन

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने यह जांच की कि क्या बस के निर्धारित मार्ग से विचलन होने पर बीमा कंपनी की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। न्यायालय ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी बनाम स्वरन सिंह (2004) और अमृत पॉल बनाम टाटा AIG (2018) जैसे कई निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें पे एंड रिकवर सिद्धांत की सीमाएं स्पष्ट की गई थीं।

Read also:- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया-आठ साल से नैनी जेल में अवैध रूप से बंद किशोर को तुरंत रिहा किया जाए, उम्र निर्धारण बिना हुआ था

पीठ ने कहा, “बीमा पॉलिसी का उद्देश्य पीड़ितों को तकनीकी कारणों से मुआवजे से वंचित होने से बचाना है। केवल इसलिए कि दुर्घटना निर्धारित मार्ग से बाहर हुई, पीड़ित परिवार को राहत से वंचित करना न्याय की भावना के विपरीत होगा।”

साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बीमा कंपनियों पर अनुबंध की सीमा से बाहर की जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकती। न्यायमूर्ति करोल ने टिप्पणी की, “बीमा अनुबंध यह निर्धारित करता है कि उसकी जिम्मेदारी किस सीमा तक है। यदि उससे बाहर के जोखिमों के लिए भी बीमा कंपनी को भुगतान के लिए बाध्य किया जाए तो यह भी अनुचित होगा।”

निर्णय

मामले का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और माना कि पे एंड रिकवर सिद्धांत का सही तरीके से उपयोग किया गया है। बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया कि वह पहले मुआवजा दे और बाद में वह राशि बस मालिक के. नागेन्द्र से वसूल करे।

Read also:- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ कई एफआईआर रद्द कीं, उन्हें "राजनीति से प्रेरित

पीठ ने कहा, “पीड़ितों के अधिकार और बीमा कंपनी के हितों के बीच संतुलन बनाते हुए, हमें हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं दिखता।” कोर्ट ने अपीलों को खारिज कर दिया और कोई लागत नहीं लगाई।

Case: K. Nagendra vs The New India Insurance Co. Ltd. & Others (2025)

Case Type: Civil Appeal (arising out of SLP (C) Nos. 7139–7140 of 2023)

Court: Supreme Court of India, Civil Appellate Jurisdiction

Bench: Justice Sanjay Karol and Justice Prashant Kumar Mishra

Date of Judgment: October 29, 2025

Advertisment

Recommended Posts