29 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने फाराह दीबा नामक महिला द्वारा एक व्हाट्सएप ग्रुप में 'ऑपरेशन सिंदूर' की प्रशंसा पर भेजे गए 'लाफिंग इमोजी' और उसके बाद लगाए गए विवादास्पद व्हाट्सएप स्टेटस को लेकर दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की हरकतें भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 152, 196, 197, 352 और 353 के तहत दंडनीय अपराध हैं।
फाराह दीबा (46 वर्ष), पेशे से शिक्षिका हैं और पुणे के मार्गोसा हाइट्स हाउसिंग सोसायटी में रहती हैं। इस सोसायटी की महिलाओं का एक व्हाट्सएप ग्रुप ‘साथ साथ मार्गोसा लेडीज’ बनाया गया था जिसमें लगभग 380 महिलाएं शामिल थीं।
7 मई 2025 को जब भारतीय सेना ने पड़ोसी देश में आतंकवादी लॉन्च पैड्स को नष्ट करने के लिए 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया, तब ग्रुप में कई सदस्यों ने देशभक्ति भरे संदेश भेजे। इसके जवाब में दीबा ने लिखा कि ग्रुप को “नेशनल न्यूज़ चैनल” ना बनाया जाए क्योंकि सभी के पास टीवी और मोबाइल हैं।
जब एक अन्य सदस्य ने कहा कि यह समय देश, सेना और प्रधानमंत्री के साथ एकजुटता दिखाने का है, और संदेश “जय हिंद, जय भारत” के साथ समाप्त किया, तो कई सदस्यों ने “जय हिंद” लिखा। इसके जवाब में दीबा ने 'लाफिंग इमोजी' भेजा, जिससे अन्य सदस्य भड़क गए।
बाद में दीबा ने व्हाट्सएप स्टेटस पर भारत का जलता हुआ झंडा और प्रधानमंत्री को रॉकेट पर बैठे दिखाने वाला वीडियो लगाया। इसके अलावा उसने “मक्कार” शब्द का इस्तेमाल करते हुए यह भी कहा कि उसका परिवार पाकिस्तान से है।
कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता की इन हरकतों से उसके आपराधिक इरादे (mens rea) का स्पष्ट संकेत मिलता है।”
कलापाडल पुलिस स्टेशन में FIR क्रमांक 178/2025 दर्ज की गई, जिसमें BNS 2023 की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालना), 196 (समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाना), 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक बयान), 352 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान) और 353 (सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने वाले बयान) शामिल हैं।
हालांकि दीबा ने शिकायतकर्ता से माफी मांगी और कहा कि वह मानसिक रूप से परेशान थी, लेकिन कोर्ट ने कहा:
“याचिकाकर्ता के संदेशों से पहले ही व्यापक नुकसान हो चुका है। इन संदेशों के बाद स्थानीय क्षेत्रों में जो अशांति फैली, वह फोटो से साफ दिखाई देती है जिसमें लोगों ने स्थानीय पुलिस स्टेशन का रुख किया।”
दीबा ने यह भी तर्क दिया कि उसे सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत जारी नोटिस व्हाट्सएप के जरिए भेजा गया था, इसलिए वह वैध नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को नोटिस की जानकारी थी और उसने जवाब नहीं दिया, इसलिए यह तर्क स्वीकार्य नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि दीबा एक शिक्षित महिला है — इंग्लिश में मास्टर्स और बीएड की डिग्री रखती है — और उससे ज्यादा जिम्मेदारी की उम्मीद की जाती है:
एक समझदार व्यक्ति से यही अपेक्षा की जाती है कि सोशल ग्रुप पर कोई भी संदेश डालने से पहले उसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर विचार किया जाए, विशेषकर जब वह व्यक्ति शिक्षिका हो, कोर्ट ने कहा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले (अशरफ खान उर्फ निसरत खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:
आजकल कुछ लोगों के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर एक फैशन बन गया है... ऐसे कृत्य राष्ट्रीय एकता और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक हैं।
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में प्रथम दृष्टया अपराध बनता है और FIR को रद्द करने का कोई आधार नहीं है।
कोर्ट ने कहा, “हम संतुष्ट हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए अपराधों के तत्व इस मामले में मौजूद हैं... याचिका में कोई मेरिट नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।”
मामले का नाम: फाराह दीबा बनाम महाराष्ट्र राज्य (क्रिमिनल रिट पिटीशन नं. 3257 ऑफ 2025)
पीठ: न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल
फैसला सुनाया गया: 29 जुलाई 2025
वकील: याचिकाकर्ता की ओर से हर्षद साठे और सौरभ भूताला; राज्य की ओर से अपर लोक अभियोजक मृण्मयी देशमुख