मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने सोमवार को एक चल रही रेलवे मध्यस्थता कार्यवाही पर रोक लगा दी। अदालत ने माना कि रेलवे द्वारा गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण शुरू से ही कानूनी रूप से वैध नहीं था। मामला कॉन्टिनेंटल टेलीपावर इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड और भारतीय रेलवे के माध्यम से भारत संघ के बीच भूमिगत सिग्नलिंग केबल की आपूर्ति से जुड़ा था। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने मौजूदा न्यायाधिकरण का कार्यकाल समाप्त कर दिया और नए मध्यस्थ की नियुक्ति का रास्ता साफ किया।
पृष्ठभूमि
यह विवाद रेलवे को पीवीसी इंसुलेटेड आर्मर्ड अंडरग्राउंड सिग्नलिंग केबल की आपूर्ति के एक ठेके से जुड़ा है। काम के दौरान मतभेद उभरे, जिसके बाद ठेकेदार ने मध्यस्थता की मांग की।
प्रक्रिया के तहत रेलवे ने कंपनी से पूछा कि क्या वह मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम के एक अहम प्रावधान को छोड़ने के लिए तैयार है-यह प्रावधान मध्यस्थों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए है। ठेकेदार ने साफ तौर पर इससे इनकार कर दिया।
इसके बावजूद, रेलवे ने बाद में चार नामों की एक सूची भेजी, जिसमें सभी पूर्व रेलवे अधिकारी थे, और कंपनी से कहा कि वह उनमें से दो नाम चुने। कॉन्टिनेंटल टेलीपावर ने आपत्ति दर्ज करते हुए नाम सुझाए, लेकिन जब रेलवे ने तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण का गठन किया और उसमें केवल सेवानिवृत्त रेलवे अधिकारियों को शामिल किया, तो कंपनी ने तुरंत विरोध किया। ठेकेदार ने इसे “शून्य और अवैध” बताया, फिर भी मध्यस्थता की कार्यवाही आगे बढ़ती रही। मजबूरी में कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति विवेक जैन ने इस मामले में स्पष्ट शब्दों में राय रखी। कोर्ट ने कहा कि ठेकेदार ने लगातार निष्पक्षता से जुड़े संरक्षण को छोड़ने से इनकार किया था और न्यायाधिकरण के गठन के तुरंत बाद आपत्ति भी दर्ज की थी।
पीठ ने कहा, “स्थिति अलग होती यदि याचिकाकर्ता ने नियुक्ति पर सहमति दी होती या उसे स्वीकार कर लिया होता,” और इस बात पर जोर दिया कि ऐसी सहमति विवाद उत्पन्न होने के बाद लिखित और स्पष्ट रूप में होनी चाहिए।
रेलवे की ओर से दलील दी गई कि इसी तरह के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला केवल भविष्य में लागू होगा और चूंकि यहां न्यायाधिकरण पहले ही नियुक्त हो चुका था, इसलिए कार्यवाही जारी रहनी चाहिए। हाईकोर्ट इस तर्क से सहमत नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि ठेकेदार का इनकार न्यायाधिकरण के गठन से पहले ही दर्ज हो चुका था और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि यदि कोई मध्यस्थ कानूनी रूप से अयोग्य है, तो पूरी कार्यवाही शुरुआत से ही शून्य हो जाती है। न्यायाधीश के शब्दों में, न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होता हुआ दिखाई भी देना चाहिए-खासकर तब, जब एक पक्ष ही मध्यस्थों की सूची तैयार करता हो।
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निर्णय
अधिनियम की धारा 14 के तहत याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि रेलवे द्वारा गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण एकतरफा था और कानूनन टिकाऊ नहीं है। तीनों मध्यस्थों का कार्यकाल समाप्त किया गया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पहले कोई शुल्क दिया जा चुका है तो वह वापस नहीं लिया जाएगा, लेकिन आगे किसी तरह का दावा नहीं किया जा सकेगा।
विवाद निपटारे की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए कोर्ट ने कहा कि अब एक नया मध्यस्थ नियुक्त किया जाना जरूरी है। चूंकि पुरानी नियुक्ति प्रक्रिया ही दोषपूर्ण पाई गई, इसलिए अदालत ने स्वयं हस्तक्षेप करना उचित समझा। कोर्ट ने एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा और रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि उनकी सहमति और वैधानिक खुलासे तय समय में प्राप्त किए जाएं। मामले को आगे के निर्देशों के लिए जनवरी की शुरुआत में सूचीबद्ध किया गया।
Case Title: Continental Telepower Industries Limited vs Union of India & Others
Case No.: Arbitration Case No. 91 of 2025
Case Type: Petition under Section 14, Arbitration and Conciliation Act, 1996
Decision Date: 22 December 2025