सुप्रीम कोर्ट ने 23 जुलाई 2025 को दिए अपने आदेश में एक ऐसे आपराधिक अपील की सुनवाई की, जिसमें एक 78 वर्षीय व्यक्ति को POCSO अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सभी सजाएं एक साथ (समवर्ती रूप से) चलेंगी न कि क्रमशः (एक के बाद एक)।
मामले की पृष्ठभूमि
SLP (Crl.) No. 8622/2023 से उत्पन्न क्रिमिनल अपील नं. ___ ऑफ 2025 में, अपीलकर्ता पेरुमालसामी ने निम्नलिखित धाराओं के तहत दोषसिद्धि और सजा को चुनौती दी थी:
- POCSO अधिनियम की धारा 10: प्रत्येक तीन मामलों में 5 वर्ष की कठोर कारावास
- IPC की धारा 506 (I): प्रत्येक तीन मामलों में 1 वर्ष की सजा
ट्रायल कोर्ट ने सजा के आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया था कि सजाएं समवर्ती चलेंगी या क्रमशः।
ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील को मद्रास उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
“ट्रायल कोर्ट का आदेश ठीक से शब्दबद्ध नहीं है और यह स्पष्ट नहीं है कि सजा समवर्ती चलेगी या क्रमशः।” — सुप्रीम कोर्ट पीठ
कोर्ट ने अपीलकर्ता की उम्र—78 वर्ष—और यह तथ्य कि वह पहले ही 3 वर्ष से अधिक की सजा काट चुका है, को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट किया कि:
“ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा समवर्ती रूप से चलेगी क्योंकि सभी दोषसिद्धियां एक ही मुकदमे में हुई थीं।”
हालांकि, कोर्ट ने दोषसिद्धि के आदेश में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।
- POCSO अधिनियम की धारा 10 और IPC धारा 506 (I) के तहत दोषसिद्धि बरकरार।
- सभी सजाएं समवर्ती रूप से चलेंगी, जिससे बुजुर्ग अपीलकर्ता को सीमित राहत मिली।
- यह अपील न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ द्वारा निपटाई गई।
केस का नाम: पेरुमलसामी बनाम तमिलनाडु राज्य, पुलिस निरीक्षक द्वारा प्रतिनिधित्व