एक महत्वपूर्ण निर्णय में, दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 पहली या दूसरी शादी में भरण-पोषण देने के अधिकार में कोई भेद नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि महिला, चाहे वह पहली शादी में हो या दूसरी में, अपने पति से वित्तीय सहायता पाने का कानूनी अधिकार रखती है।
यह मामला एक ऐसे पति से जुड़ा था जिसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पत्नी को ₹1,00,000 प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। पति ने तर्क दिया कि पत्नी की यह दूसरी शादी थी और उसके पहले विवाह से दो पुत्र हैं। साथ ही, उसने अपनी आर्थिक व चिकित्सीय स्थिति का हवाला देकर भरण-पोषण की राशि कम करने की मांग की।
हालांकि, न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा की अध्यक्षता में हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज करते हुए ₹1 लाख की भरण-पोषण राशि को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि पति ने महिला की पारिवारिक स्थिति जानते हुए विवाह किया था और अब वह इस आधार पर कानूनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।
“घरेलू हिंसा अधिनियम भरण-पोषण के अधिकार के लिए पहली या दूसरी शादी में अंतर नहीं करता। एक बार जब पति ने स्वेच्छा से विवाह किया और पत्नी व उसके बच्चों को स्वीकार किया, तो अब वह इसे बहाना बनाकर अपने कानूनी दायित्व से नहीं बच सकता।”
पति ने दावा किया कि वह Ankylosing Spondylitis नामक एक पुरानी बीमारी से ग्रसित है और हर माह ₹1.56 लाख का इलाज खर्च होता है। लेकिन कोर्ट ने पाया कि उसने इस बात का कोई चिकित्सीय प्रमाण नहीं दिया। जबकि उसके आयकर दस्तावेज़ों के अनुसार उसकी वार्षिक आय ₹28 लाख (2020–21) और ₹36 लाख (2021–22) रही है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि वह विलासितापूर्ण जीवन जी रहा है – चालक, नौकर, रसोइया, देखभाल करने वाला आदि का खर्च स्वयं उसने स्वीकार किया। उसके मासिक खर्च ₹1.5 से ₹2 लाख तक हैं, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति स्पष्ट होती है।
“यह समझ से परे है कि जो व्यक्ति ₹1 लाख से कम मासिक आय का दावा करता है, वह ₹1.56 लाख अपने ऊपर खर्च कर रहा है। उसके आयकर दस्तावेज़ कुछ और ही बताते हैं।”
सुनवाई के दौरान पत्नी ने आरोप लगाया कि पति ने संपत्ति को दूसरों के नाम करके अपनी कानूनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की। कोर्ट ने इसे सही पाया और ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को भी सही ठहराया जिसमें पति को कोर्ट की अनुमति के बिना कोई भी संपत्ति बेचने से मना किया गया था।
“ऐसे आचरण से पत्नी की आशंका को बल मिलता है और पति की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठता है।”
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को सम्मानजनक जीवन देने हेतु भरण-पोषण दे। अगर पत्नी की कमाई नहीं है या वह निर्भर है, तो उसे उसी स्तर की जीवनशैली मिलनी चाहिए जैसी पति खुद जी रहा है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही पत्नी काम करने में सक्षम हो, लेकिन जब तक वह स्वतंत्र आय अर्जित नहीं करती, भरण-पोषण से इनकार नहीं किया जा सकता।
“जब तक पत्नी अपात्र न हो, तब तक उसका भरण-पोषण पाने का अधिकार पूर्ण है। जब पति कमाने में सक्षम है, तो वह इस दायित्व से बच नहीं सकता।”
पति ने यह भी कहा कि पत्नी की खर्च की राशि में उसके दो वयस्क पुत्रों का खर्च शामिल है। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्राप्तवय (बालिग) पुत्रों को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण नहीं मिल सकता। इसलिए ₹1 लाख की राशि केवल पत्नी के लिए ही है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के ₹1 लाख भरण-पोषण के आदेश को बरकरार रखा और पति की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का आदेश पूर्णत: कानून सम्मत, तर्कसंगत और उचित है।
“कोर्ट को इस आदेश में कोई त्रुटि, अन्याय या अनुचितता नहीं दिखाई देती। अतः याचिका खारिज की जाती है।”
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