नई दिल्ली, 23 सितम्बर – बार-बार मुकदमेबाजी पर सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोझिकोड के कारोबारी सतीश वी.के. की दो सिविल अपीलें खारिज कर दीं। सतीश ने फेडरल बैंक से लिए ₹7.77 करोड़ के कर्ज़ का भुगतान नहीं किया था। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि सतीश बिना अनुमति अपनी पहली विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) वापस लेने के बाद फिर से चुनौती नहीं दे सकते और “दूसरी बार मौका लेने” का हक़ नहीं रखते।
पृष्ठभूमि
सतीश ने बड़ी रकम का कर्ज़ लेने के लिए अपनी संपत्ति गिरवी रखी थी, लेकिन भुगतान में चूक हुई। फेडरल बैंक ने खाते को गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित कर SARFAESI कानून के तहत संपत्ति कब्ज़ाने की कार्यवाही शुरू की। अक्टूबर 2024 में केरल हाईकोर्ट ने आंशिक राहत देते हुए आदेश दिया कि वह 30 अक्टूबर तक ₹2 करोड़ जमा करें और बाकी रकम 12 किस्तों में चुकाएं। शर्तें पूरी न करने पर सतीश पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, मगर 28 नवंबर 2024 को अदालत की अनिच्छा देखते हुए उन्होंने अपनी एसएलपी वापस ले ली। इसके बाद हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका लगाई, जो दिसंबर 2024 में खारिज हुई, और उन्होंने तुरंत ही नई अपीलें सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल कर दीं।
Read also: सुप्रीम कोर्ट ने जबलपुर अफसर पर दुष्कर्म FIR रद्द की, शिकायत में देरी और बदले की मंशा पर सवाल
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने इस तरह की मुकदमेबाजी पर नाराज़गी जताई। जस्टिस दत्ता ने कहा, “जिस तेजी से अपीलकर्ता बिना भुगतान की इच्छा दिखाए एक अदालत से दूसरी अदालत भागे, वह हमारे ध्यान में है।”
फेडरल बैंक के वकील ने तर्क दिया कि पहली याचिका वापस लेते समय दोबारा दायर करने की कोई अनुमति नहीं दी गई थी, इसलिए दूसरी एसएलपी सुनने योग्य नहीं है। सतीश के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट की असाधारण शक्तियाँ तकनीकी अड़चनों को पार कर सकती हैं और कई पुराने फैसले गिनाए।
Read also: सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जजों के लिए परफॉर्मेंस गाइडलाइंस और समय पर फैसले देने की जरूरत पर जोर
लेकिन न्यायाधीश सहमत नहीं हुए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक नीति के तहत मुकदमों का अंत ज़रूरी है और लैटिन उक्ति interest reipublicae ut sit finis litium उद्धृत की-जनहित में मुकदमे का अंत होना चाहिए। 1999 के उपाध्याय एंड कंपनी फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि जो पक्ष अनुमति लिए बिना एसएलपी वापस लेता है, “उसे दोबारा उसी आदेश को चुनौती देने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।”
निर्णय
अपीलों को “अस्वीकार्य” मानते हुए पीठ ने उन्हें तुरंत खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, “ऐसे मामले में विशेष अनुमति याचिका स्वीकार करना सार्वजनिक नीति के खिलाफ होगा।” साथ ही सतीश को यह स्वतंत्रता दी कि यदि चाहें तो कानून के अनुसार अन्य मंच पर उपाय तलाश सकते हैं, मगर केरल हाईकोर्ट का पुनर्भुगतान आदेश जस का तस रहेगा।
मामला: सतीश वी.के. बनाम फेडरल बैंक लिमिटेड – वापसी के बाद दूसरी विशेष अनुमति याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय
निर्णय की तिथि: 23 सितंबर 2025