सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर की रेत खनन पर्यावरणीय मंजूरी पर अपील खारिज की

By Vivek G. • August 23, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर की रेत खनन मंजूरी पर अपील खारिज की। अदालत ने कहा कि जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट में पुनर्भरण अध्ययन अनिवार्य है।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2025 को एक अहम फैसले में जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और परियोजना प्रस्तावक की अपीलें खारिज कर दीं। मामला शालीगंगा नाला नदी में रेत खनन के लिए दी गई पर्यावरणीय मंजूरी (EC) से जुड़ा था।

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यह केस, Union Territory of J&K बनाम राजा मुजफ्फर भट एवं अन्य, इस सवाल पर केंद्रित था कि बिना सही पर्यावरणीय अध्ययन, खासकर पुनर्भरण अध्ययन (Replenishment Study) के, क्या जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) के आधार पर खनन की अनुमति दी जा सकती है?

केस की पृष्ठभूमि

सड़क निर्माण (श्रीनगर रिंग रोड परियोजना) के लिए परियोजना प्रस्तावक को शालीगंगा नाला में खनन ब्लॉक्स दिए गए थे। जनवरी 2022 में, जम्मू-कश्मीर विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) ने प्रस्तावों को खारिज कर दिया क्योंकि नदी का हिस्सा अवैध खनन से पहले ही क्षतिग्रस्त हो चुका था और DSR में पुनर्भरण डेटा शामिल नहीं था।

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बाद में, भूविज्ञान और खनन विभाग से "खनन के लिए उपयुक्त" प्रमाणपत्र मिलने के बाद, परियोजना प्रस्तावक ने दोबारा आवेदन किया। मार्च 2022 तक, EAC ने यह मानते हुए भी मंजूरी की सिफारिश कर दी कि DSR अधूरा है। इसके बाद, राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) ने 19 अप्रैल 2022 को मंजूरी दे दी, लेकिन खनन की गहराई को केवल 1 मीटर तक सीमित कर दिया गया क्योंकि पुनर्भरण डेटा उपलब्ध नहीं था।

इस फैसले को पर्यावरण कार्यकर्ता राजा मुजफ्फर भट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में चुनौती दी, जिसने पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए मंजूरी को रद्द कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने NGT के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तभी मान्य है जब उसमें उचित पुनर्भरण अध्ययन शामिल हो। अदालत ने माना कि बिना वैज्ञानिक डेटा के मंजूरी देना एक नियामक विफलता है।

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जजमेंट में कहा गया:

“निर्देशों के अनुसार DSR की तैयारी और पुनर्भरण अध्ययन का न होना एक निर्विवाद तथ्य है। ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है जिसमें केवल 1 मीटर गहराई तक खनन की अनुमति देने से पुनर्भरण अध्ययन की आवश्यकता को दरकिनार किया जा सके।”

अदालत ने EAC और SEIAA को भी फटकार लगाई कि उन्होंने अधूरी रिपोर्ट पर मंजूरी देकर नियामक पारदर्शिता से समझौता किया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया कि खनन नियमों के उल्लंघन का कोई ठोस सबूत नहीं है। लेकिन परियोजना प्रस्तावक ने वास्तव में भारी मशीनों जैसे जेसीबी और एक्सकेवेटर का इस्तेमाल किया, जो मंजूरी की शर्तों के खिलाफ था। मंजूरी में साफ कहा गया था कि खनन केवल मैनुअल या अर्ध-यांत्रिक तरीकों से किया जाए। इस मामले में जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया।

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चूंकि सड़क परियोजना अब पूरी हो चुकी है, अदालत ने आगे किसी नई पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं मानी। अंततः, जम्मू-कश्मीर प्रशासन, NHAI और परियोजना प्रस्तावक की सभी अपीलें खारिज कर दी गईं और सभी पक्षों को अपने-अपने खर्च उठाने का आदेश दिया गया।

मामले का शीर्षक: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर (पूर्व में जम्मू और कश्मीर राज्य) एवं अन्य बनाम राजा मुजफ्फर भट एवं अन्य

अपीलें: सिविल अपील संख्या 8055/2022, सिविल अपील संख्या 68/2023, और सिविल अपील (डायरी संख्या 1007/2025)

निर्णय तिथि: 22 अगस्त 2025

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