सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को टीना खन्ना अहलुवालिया द्वारा अपने पूर्व पति नितिन अहलुवालिया के खिलाफ दायर दहेज-क्रूरता मामले को खारिज कर दिया। जस्टिस संजय करोल की अगुवाई वाली पीठ ने पाया कि यह FIR विदेशी अदालतों के उन आदेशों का “प्रतिघात” है, जिनमें पहले ही तलाक दिया जा चुका था और बच्चे को ऑस्ट्रेलिया लौटाने का निर्देश दिया गया था।
पृष्ठभूमि
भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिक नितिन ने 2010 में ऑस्ट्रियाई नागरिक टीना से पंचकूला में शादी की थी। 2012 में उनकी एक बेटी हुई। 2013 में टीना ने नितिन की सहमति के बिना बच्चे के साथ ऑस्ट्रिया जाने का फैसला किया। कई ऑस्ट्रियाई अदालतों ने बच्चे को ऑस्ट्रेलिया वापस भेजने का आदेश दिया और कहा कि मां उसके साथ जा सकती है। इस बीच, ऑस्ट्रेलियाई अदालत ने अप्रैल 2016 में तलाक दे दिया। एक महीने बाद, टीना ने पंजाब में शादी से जुड़ी दहेज मांग और क्रूरता के आरोपों वाला मामला दर्ज कराया।
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न्यायालय के अवलोकन
न्यायाधीशों ने देरी और विरोधाभासों पर गंभीर सवाल उठाए। पीठ ने पूछा, “लगभग तीन साल अलग रहने के बाद भी शिकायत सिर्फ तलाक के बाद ही क्यों दर्ज की गई?” अदालत ने यह भी कहा कि भारत के हेग कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता न होने से ऑस्ट्रियाई अदालतों के बाध्यकारी आदेशों को नकारा नहीं जा सकता। न्यायालय ने पाया कि क्रूरता के आरोप शादी की अवधि से आगे तक फैले हुए हैं और भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत आवश्यक मंशा का अभाव है।
जस्टिस करोल ने टिप्पणी की, “यह मानने में कि FIR विदेशी अदालतों में अपीलकर्ता की सफलता का मात्र प्रतिघात है, कोई अतिशयोक्ति नहीं दिखती।” पीठ ने यह भी सवाल किया कि जब ऑस्ट्रियाई अदालतों ने बच्चे को एकतरफा हटाने को अवैध माना था तो टीना ने बच्चे के अपहरण का डर क्यों जताया।
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निर्णय
स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम भजन लाल मामले में तय किए गए “प्रक्रिया के दुरुपयोग” के सिद्धांत को लागू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में महिला थाना, एसएएस नगर, पंजाब में दर्ज FIR को रद्द कर दिया।
पीठ ने निष्कर्ष निकाला, “यदि यह एफआईआर आगे बढ़ती है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।” इस तरह नितिन अहलुवालिया की अपील स्वीकार करते हुए आठ साल पुरानी आपराधिक लड़ाई को समाप्त कर दिया गया।
केस का शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट ने नितिन अहलूवालिया के खिलाफ दहेज-क्रूरता की एफआईआर रद्द की
दिनांक: 18 सितंबर 2025