सुप्रीम कोर्ट ने BALCO के खिलाफ मध्यस्थता अवॉर्ड बहाल किया, कहा- ठेकेदार के मुआवज़े को रद्द करते समय हाई कोर्ट ने सीमाएं लांघीं

By Shivam Y. • December 19, 2025

रमेश कुमार जैन बनाम भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को), सुप्रीम कोर्ट ने BALCO के खिलाफ मध्यस्थता अवॉर्ड बहाल किया, कहा कि हाई कोर्ट ने साक्ष्यों की दोबारा जांच कर अपनी सीमाएं पार कीं।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खनन ठेकेदार रमेश कुमार जैन के पक्ष में एक दशक पुराने मध्यस्थता अवॉर्ड को बहाल करते हुए हस्तक्षेप किया और कहा कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मध्यस्थता कानून के तहत अवॉर्ड में दखल देते समय अपनी सीमा पार कर दी। खचाखच भरे अदालत कक्ष में बैठी पीठ ने साफ कहा कि केवल इसलिए कि कोई दूसरा दृष्टिकोण संभव है, अदालतें मध्यस्थता निष्कर्षों पर अपीलीय प्राधिकरण की तरह व्यवहार नहीं कर सकतीं।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद 1990 के दशक के उत्तरार्ध का है, जब भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (BALCO) ने मेनपाट खदानों से कोरबा संयंत्र तक बॉक्साइट के खनन और परिवहन का ठेका रमेश कुमार जैन को दिया था। शुरुआती अनुबंध में दरें और मात्रा तय थीं, लेकिन सहमत मात्रा पूरी होने के बाद समस्याएं शुरू हुईं।

BALCO ने जैन से काम जारी रखने को कहा, लेकिन अतिरिक्त कार्य के लिए कीमत तय नहीं की गई। इसके बावजूद जैन ने काम जारी रखा और करीब 1.95 लाख मीट्रिक टन बॉक्साइट की आपूर्ति की। भुगतान हुआ, लेकिन अतिरिक्त खर्च, हड़ताल के दौरान मशीनरी के बेकार रहने और विलंबित बिलों को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

बातचीत विफल रहने पर मध्यस्थता का सहारा लिया गया। 2012 में एकमात्र मध्यस्थ ने ब्याज सहित लगभग ₹3.71 करोड़ का अवॉर्ड जैन के पक्ष में दिया। वाणिज्यिक अदालत ने 2017 में इस अवॉर्ड को बरकरार रखा। हालांकि, 2023 में हाई कोर्ट ने इसे “पेटेंट इलिगैलिटी” बताते हुए रद्द कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के दृष्टिकोण से स्पष्ट रूप से असहमत दिखा। पीठ ने कहा कि मध्यस्थता कानून न्यायिक हस्तक्षेप की केवल सीमित गुंजाइश देता है। अदालत ने कहा, “धारा 37 साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करने की खुली छूट नहीं देती,” और यह भी रेखांकित किया कि जब कोई अवॉर्ड पहले ही धारा 34 की चुनौती से बच चुका हो, तब अपीलीय समीक्षा और भी संकीर्ण हो जाती है।

हाई कोर्ट की इस टिप्पणी पर कि मध्यस्थ ने अनुमान के आधार पर निष्कर्ष निकाले, सुप्रीम कोर्ट ने असहमति जताई। अदालत ने कहा कि मध्यस्थ सख्त साक्ष्य नियमों से बंधे नहीं होते और जहां सटीक आंकड़े तय करना मुश्किल हो, वहां “रफ एंड रेडी” तरीके को अपना सकते हैं, बशर्ते रिकॉर्ड पर कुछ सामग्री मौजूद हो।

₹10 प्रति मीट्रिक टन अतिरिक्त भुगतान के मुद्दे पर पीठ ने स्पष्ट किया कि यह अनुबंध को फिर से लिखने का मामला नहीं है। अतिरिक्त कार्य BALCO के अनुरोध पर किया गया था और उसकी कोई दर तय नहीं थी। ऐसे मामलों में ‘क्वांटम मेरिट’ यानी किए गए कार्य के लिए भुगतान का सिद्धांत लागू करना उचित था। पीठ ने टिप्पणी की, “यह अनुबंध के खालीपन को भरना था, नया सौदा गढ़ना नहीं।”

न्यायाधीशों ने यह भी स्पष्ट किया कि “पेटेंट इलिगैलिटी” का अर्थ हर त्रुटि या वैकल्पिक व्याख्या नहीं है। यह केवल तभी लागू होती है जब निष्कर्ष बेतुके हों, बिल्कुल बिना साक्ष्य के हों, या सीधे तौर पर कानून या अनुबंध के विपरीत हों।

निर्णय

जैन की अपील स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और वाणिज्यिक अदालत के आदेश के साथ 15 जुलाई 2012 का मूल मध्यस्थता अवॉर्ड बहाल कर दिया। इसके साथ ही BALCO के खिलाफ ठेकेदार को दिया गया मुआवज़ा फिर से प्रभावी हो गया और लंबे समय से चला आ रहा यह विवाद सर्वोच्च स्तर पर समाप्त हो गया।

Case Title: Ramesh Kumar Jain v. Bharat Aluminium Company Limited (BALCO)

Case No.: Civil Appeal of 2025 (arising out of SLP (C) No. 14529 of 2023)

Case Type: Civil Appeal (Arbitration Matter under Arbitration and Conciliation Act, 1996)

Decision Date: 18 December 2025

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