इस सप्ताह की सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT) का आदेश रद्द करते हुए धनलक्ष्मी इलेक्ट्रिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया को फिर से बहाल कर दिया। अदालत ने कंपनी के बचाव को “सिर्फ दिखावा” बताते हुए कहा कि उनका कोई ठोस आधार नहीं था। जस्टिस संजय कुमार की अगुवाई वाली पीठ ने कई बार सवाल उठाया कि अपीलीय अधिकरण ने क्यों उस लेजर प्रविष्टि की अनदेखी की, जिसमें स्वयं कंपनी ने ₹1.79 करोड़ से अधिक बकाया स्वीकार किया था।
Background (पृष्ठभूमि)
यह विवाद तब शुरू हुआ जब साझेदारी फर्म, एम/एस सरस्वती वायर एंड केबल इंडस्ट्रीज़ ने लंबे समय में सप्लाई किए गए पाइप्स और केबल्स के बकाया भुगतान के लिए IBC की धारा 9 का सहारा लिया। दिसंबर 2023 में मुंबई स्थित NCLT ने केस स्वीकार कर लिया, लेकिन कंपनी के निलंबित निदेशक ने NCLAT जाकर आदेश को पलटवा लिया।
मामले को और उलझाने वाली बात यह थी और वास्तव में अदालत में बैठे लोगों के लिए भी भ्रमित करने वाली-कि सितंबर 2021 में ही कंपनी के खिलाफ एक अलग दिवाला प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। उसी दौरान, कंपनी के एक निलंबित निदेशक ने फर्म की डिमांड नोटिस का जवाब दिया, जबकि कानूनन, IRP के नियंत्रण संभालने के बाद उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं था।
Court’s Observations (अदालत की टिप्पणियाँ)
सुप्रीम कोर्ट ने उन तथाकथित “पूर्व-विवादों” पर कड़ा रुख अपनाया, जिनका हवाला कॉरपोरेट देनदार देता रहा। जब कंपनी की ओर से पुराने विवाद-कम सप्लाई, खराब गुणवत्ता, नुकसान-का मुद्दा उठाया गया, तो पीठ ने सीधे सवाल किए।
“पीठ ने टिप्पणी की, ‘ये तथाकथित विवाद न तो प्रमाणित हैं और न ही वास्तविक। भुगतान रोकने का कोई असली कारण नहीं था।’”
अदालत ने नोट किया कि-
- कंपनी ने डिमांड नोटिस के बाद भी भुगतान जारी रखा-कुल ₹61 लाख-जो तभी होता जब कोई वास्तविक विवाद न हो।
- कंपनी द्वारा अगस्त 2021 में भेजे गए लेजर में ₹2.49 करोड़ का डेबिट बैलेंस स्पष्ट था, जो बाद में आंशिक भुगतान से घटकर ₹1.79 करोड़ रहा।
- खराब सामग्री के कारण ब्लैकलिस्टिंग या बड़े वित्तीय नुकसान का कोई दस्तावेज कंपनी ने प्रस्तुत नहीं किया।
एक चरण पर अदालत ने यह भी कहा कि यह “मुश्किल से ही विश्वसनीय” है कि सप्लायर ने 2019 में ही ई-वे बिल और डिलीवरी चालान जैसे दस्तावेज़ भविष्य के मुकदमे को ध्यान में रखकर तैयार किए होंगे।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि NCLAT को पहले से चल रही CIRP के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी, जिससे यह पता चलता है कि फर्म ने अपनी इनसॉल्वेंसी याचिका दायर करने से पहले इंतज़ार क्यों किया। जजों ने कहा कि इस तथ्य को "क्रेडिटर के खिलाफ नहीं माना जा सकता।"
Read also:- श्रम अधिकारी पर रिश्वत लेने के आरोप में जमानत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फॉल्टी ट्रैप प्रक्रिया पर कड़ी
Decision (निर्णय)
महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी करने के लिए NCLAT को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने NCLT का आदेश बहाल कर दिया और कहा कि धारा 9 के तहत दायर याचिका को सही रूप से स्वीकार किया गया था।
अदालत ने आदेश दिया कि दिवाला प्रक्रिया वहीं से शुरू की जाए जहाँ यह मूल रूप से रुकी थी। इसके साथ ही अपील को अनुमति दी गई और मामला अदालत के निर्णय तक सीमित कर दिया गया।
Case Title: M/s Saraswati Wire and Cable Industries vs. Mohammad Moinuddin Khan & Others
Case No.: Civil Appeal No. 12261 of 2024
Case Type: Civil Appeal (IBC – Section 9 Operational Creditor Insolvency)
Decision Date: December 10, 2025