बुधवार को भरे हुए कोर्टरूम में सुप्रीम कोर्ट की पाँच-न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने आखिरकार न्यायपालिका के भीतर चल रहे सबसे पुराने विवादों में से एक को सुलझा दिया - विभिन्न स्रोतों से भर्ती हुए जिला न्यायाधीशों की वरिष्ठता कैसे तय की जाए। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली पीठ ने पूरे देश के लिए एक समान वार्षिक रोस्टर प्रणाली घोषित की, यह कहते हुए कि “हार्टबर्न” और राज्यों में “असमान प्रथाओं” को समाप्त करना अब आवश्यक हो गया था।
Background (पृष्ठभूमि)
यह विवाद 1989 से चल रहा है, जब ऑल इंडिया जजेज़ एसोसिएशन ने पहली बार सुप्रीम कोर्ट से न्यायिक सेवा में संरचनात्मक सुधारों की मांग की थी। समय के साथ, हाईयर ज्यूडिशियल सर्विस (HJS) - यानी जिला न्यायाधीशों का कैडर - तीन अलग-अलग रास्तों से अधिकारियों को लेता रहा है:
- रेगुलर प्रोमोटी (RP) – निचली अदालतों से प्रमोशन पाए अधिकारी,
- एलडीसीई (LDCE) के जरिए आने वाले अधिकारी, और
- डायरेक्ट रिक्रूट (DR) – प्रैक्टिस कर रहे वकील।
हर समूह लंबे समय से यह महसूस करता रहा कि दूसरे को अनुचित फायदा मिलता है। निचली अदालतों से ऊपर आए अधिकारियों को शिकायत रहती थी कि उनसे कम उम्र के डायरेक्ट रिक्रूट जल्द ही उन्हें पीछे छोड़ देते हैं। वहीं, डायरेक्ट रिक्रूट कहते थे कि HJS में प्रवेश के बाद उनकी पिछली पृष्ठभूमि को उनके खिलाफ नहीं देखा जाना चाहिए। समय के साथ राज्यों ने अलग-अलग रोस्टर मॉडल अपना लिए, कुछ में शुरुआती स्थान RPs को दिए गए, कुछ में LDCE को। कोर्ट के अनुसार, यह “एकरूपता के आदर्श के खिलाफ” था।
Court’s Observations (कोर्ट की टिप्पणियाँ)
पीठ ने साफ कहा कि भावनात्मक असंतोष से सेवा नियम नहीं बनाए जा सकते। “सिर्फ महसूस किए गए हार्टबर्न… कृत्रिम वर्गीकरण का आधार नहीं बन सकते,” कोर्ट ने कहा।
न्यायालय ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि सिविल जज के रूप में लंबे समय तक सेवा करने वालों को HJS में प्रवेश के बाद वरिष्ठता में स्वचालित लाभ मिलना चाहिए। पीठ ने कहा कि एक बार अधिकारी HJS में प्रवेश करते हैं, “वे अपने स्रोत का जन्मचिन्ह खो देते हैं।” यानी उसके बाद सभी को समान माना जाएगा।
डायरेक्ट रिक्रूट्स के तेज़ी से आगे बढ़ने की शिकायतों पर कोर्ट ने कहा कि स्थिति पूरे देश में एक जैसी नहीं है। कई राज्यों में प्रमोटी अधिकारी ही प्रमुख पदों पर हैं। कोर्ट के शब्दों में, “कोई सामान्य बीमारी नहीं दिखती।”
मुख्य न्यायाधीश ने एक सरल उदाहरण देकर बात समझाई: “HJS को एक मंज़िल की तरह सोचिए। कोई फ्लाइट से पहुँचता है, कोई ट्रेन से, कोई पैदल। इससे वरिष्ठता तय नहीं हो सकती।” कोर्टरूम में हल्की हंसी गूंजी, लेकिन संदेश बिल्कुल स्पष्ट था।
फिर भी, कोर्ट ने माना कि डायरेक्ट रिक्रूट और LDCE अधिकारियों की भर्ती में होने वाली देरी अक्सर वरिष्ठता को बिगाड़ देती है। इसे ठीक करने के लिए कोर्ट ने एक खास अपवाद बनाया - यदि भर्ती अगले वर्ष पूरी होती है और अगले वर्ष की नई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है, तो ऐसे अधिकारी पिछली वर्ष की रोस्टर पोज़िशन पा सकते हैं।
Decision (निर्णय)
अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने एक सरल लेकिन व्यापक सुधार लागू किया: एक समान 4-पॉइंट वार्षिक रोस्टर, जो हमेशा इस क्रम में दोहराया जाएगा-
1. रेगुलर प्रोमोटी (RP)
2. रेगुलर प्रोमोटी (RP)
3. LDCE भर्ती
4. डायरेक्ट भर्ती (DR)
यह पैटर्न हर वर्ष पूरे देश में लागू होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल में प्रमोशन का आधार हमेशा मेरिट रहेगा, न कि निचली अदालतों में बिताए गए वर्षों का अनुभव।
सभी राज्यों को अपने सेवा नियम तीन महीने के भीतर संशोधित करने का आदेश दिया गया। इसी के साथ इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन निपटा दी गई।
Case Title: All India Judges Association & Others vs. Union of India & Others (2025)
Issue: Seniority Determination in Higher Judicial Service (HJS)
Court: Supreme Court of India, Constitution Bench (5 Judges).
Judgment Date: 19 November 2025