हैदराबाद स्थित तेलंगाना हाईकोर्ट ने 22 सितम्बर 2025 को वाणिज्यिक वादों की न्यूनतम मूल्य सीमा पर महत्वपूर्ण सवाल का निपटारा कर दिया। अनुबंधों और भुगतानों को लेकर विवाद में उलझी कंपनियों के लिए अहम इस फैसले में न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति गाड़ी प्रवीण कुमार की खंडपीठ ने जैनसेट लैब्स प्रा. लि. की याचिका खारिज कर दी। इस कंपनी ने एगिलेंट टेक्नोलॉजीज इंडिया प्रा. लि. द्वारा दायर वाद को अस्वीकार कराने की कोशिश की थी।
पृष्ठभूमि
यह विवाद एजिलेंट टेक्नोलॉजीज द्वारा रंगा रेड्डी जिले की वाणिज्यिक अदालत में दायर एक वाणिज्यिक मुकदमे से जुड़ा है। एजिलेंट ने ₹1.03 करोड़ से अधिक की वसूली की मांग की, जिसमें ₹44.53 लाख का मूलधन, संचित ब्याज और हर्जाना शामिल है। उस मुकदमे में प्रतिवादी, जैनसेट लैब्स ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 11 के तहत वाद को खारिज करने का अनुरोध किया।
उनका तर्क था कि इस मामले को "वाणिज्यिक मुकदमे" के रूप में योग्य नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि उनके अनुसार, इसका मूल्य वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 के तहत निर्धारित ₹1 करोड़ की सीमा से कम है। जैनसेट के वकील, श्री शरद सांघी ने पीठ को बताया कि दावों को अलग-अलग खंडों में विभाजित करने से आंकड़ा कृत्रिम रूप से बढ़ गया है और इस तरह के विभाजन के बिना, मूल्य आवश्यक सीमा से अधिक नहीं है।
दूसरी ओर, एजिलेंट के वकील, श्री इस्तियाक हुसैन ने दृढ़ता से कहा कि कुल दावा स्पष्ट रूप से ₹1 करोड़ से अधिक है और किसी भी मामले में, 2018 के संशोधन के बाद, कानून को वाणिज्यिक विवाद के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए केवल न्यूनतम ₹3 लाख की आवश्यकता थी।
न्यायालय की टिप्पणियां
पीठ ने सबसे पहले वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की धारा 2(1)(i) के साथ-साथ धारा 12 को पढ़ते हुए कानून की सावधानीपूर्वक जांच की। न्यायालय की ओर से लिखते हुए न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने बताया कि 2018 के संशोधन ने पहले ही न्यूनतम सीमा को ₹1 करोड़ से घटाकर ₹3 लाख कर दिया है।
पीठ ने कहा, "यह तर्क कि जब तक राज्य अधिसूचना जारी नहीं करता, यह संशोधन तेलंगाना में लागू नहीं होगा, भ्रामक है।"
पीठ ने स्पष्ट किया कि अधिनियम में ही स्पष्ट किया गया है कि अधिसूचना जारी करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और राज्य सरकार द्वारा अलग से अधिसूचना जारी करने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायाधीशों ने दो अवधारणाओं - "निर्दिष्ट मूल्य" और "आर्थिक मूल्य" - के बीच भी अंतर किया। जहाँ पहला यह निर्धारित करता है कि कोई विवाद वाणिज्यिक मामले के रूप में योग्य है या नहीं, वहीं दूसरा विशिष्ट न्यायालयों के वित्तीय क्षेत्राधिकार को निर्धारित करता है। पीठ ने कहा कि दोनों को मिलाने से जैनसेट लैब्स के प्रस्तुतीकरण में अनावश्यक भ्रम पैदा हुआ है।
आदेश में कड़े शब्दों में कहा गया:
"निर्दिष्ट मूल्य अधिनियम के अंतर्गत वाणिज्यिक विवाद के प्रवेश का मूल है, जबकि आर्थिक मूल्य न्यायालय की क्षमता निर्धारित करता है।"
अदालत ने आगे कहा कि एजिलेंट के मुकदमे में की गई प्रार्थना - बकाया राशि की वसूली, 45 लाख रुपये का हर्जाना और ब्याज - आसानी से आवश्यकता को पूरा करती है, भले ही कोई सीमा मुद्दे को नजरअंदाज कर दे।
निर्णय
अंततः पीठ ने जैनसेट लैब्स की सिविल पुनरीक्षण याचिका संख्या 1932/2025 को खारिज कर दिया। अदालत ने वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा जिसने पहले ही वाद को अस्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
"वाद में मांगी गई राहतें धारा 2(1)(i) के तहत निर्धारित मूल्य की शर्त पूरी करती हैं। अतः हमें याचिका में कोई दम नहीं दिखता," अदालत ने कहा।
इस आदेश के साथ जैनसेट लैब्स की प्रारंभिक रोक लगाने की कोशिश नाकाम रही और अब कंपनी को मुकदमे का सामना करना होगा। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रतिवादी को कानूनन उपलब्ध अन्य सभी दलीलें आगे की सुनवाई में रखने की स्वतंत्रता होगी।
इस फैसले को स्पष्ट संदेश माना जा रहा है कि तीन लाख रुपये से ऊपर के सभी वाणिज्यिक विवाद अब वाणिज्यिक न्यायालयों के दायरे में आएंगे, चाहे राज्य सरकारें अलग अधिसूचना निकालें या नहीं।
Case Title: M/s. Janset Labs Pvt. Ltd. vs. Agilent Technologies India Pvt. Ltd.
Case No.: Civil Revision Petition No. 1932 of 2025