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प्रधान एवं प्रतिभू

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प्रधान एवं प्रतिभू: हिंदी ड्राफ्ट संग्रह—(1) प्रतिभूति बंधपत्र के आधार पर प्रतिभू के विरुद्ध नुकसानी का वाद, (2) प्रधान देनदार व प्रतिभू दोनों के विरुद्ध माल के मूल्य की वसूली का वाद, और (3) सह‑प्रतिभुओं के बीच अभिदाय (contribution) हेतु वाद—भारतीय संविदा अधिनियम की धाराओं के अनुरूप.

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Quick Overview

‘प्रधान एवं प्रतिभू’ निर्देशिका में तीन व्यावहारिक हिंदी ड्राफ्ट हैं—(1) प्रतिभू के विरुद्ध नुकसानी का वाद (गारंटी प्रवर्तन), (2) प्रधान देनदार एवं प्रतिभू दोनों के विरुद्ध माल मूल्य वसूली का वाद (co‑extensive liability), और (3) सह‑प्रतिभुओं के बीच contribution हेतु वाद. ये प्रारूप भारतीय संविदा अधिनियम की धाराओं 126, 128, 133–141, 140–141 के सिद्धांतों पर आधारित हैं और आवश्यक दस्तावेज, लिमिटेशन व संभावित discharge/defence को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं.

All templates are provided for reference and should be reviewed by legal professionals before use.

Frequently Asked Questions

Common questions about प्रधान एवं प्रतिभू legal templates

इन तीनों ड्राफ्ट्स का उपयोग कब करें?

जब गारंटी के आधार पर: (1) केवल प्रतिभू से वसूली करनी हो, (2) प्रधान देनदार और प्रतिभू दोनों से संयुक्त/वैकल्पिक वसूली करनी हो, या (3) एक सह‑प्रतिभू ने भुगतान कर दिया हो और अन्य सह‑प्रतिभुओं से योगदान (contribution) मांगना हो.

प्रधान देनदार और प्रतिभू की देयता का कानूनी आधार क्या है?

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872: धारा 126 (guarantee), 128 (co‑extensive liability), 140‑141 (subrogation और सिक्योरिटीज पर अधिकार). सामान्यतः प्रतिभू की देयता प्रधान देनदार के समानांतर होती है, जब तक कि वे discharge न हो जाएं.

प्रतिभू किन आधारों पर discharge हो सकता है?

गारंटी की शर्तों में भौतिक परिवर्तन, बिना प्रतिभू की सहमति ऋण की शर्तों में variance, सिक्योरिटी का नुकसान/रिलीज, समयवृद्धि (बिना सहमति), या कर्जदाता के आचरण से प्रिजुडिस—प्रासंगिक धाराएँ 133–139.

सह‑प्रतिभुओं के बीच contribution कैसे तय होता है?

यदि अनुबंध में अलग न हो, तो सह‑प्रतिभू समानुपात में योगदान के उत्तरदायी होते हैं. जिसने अधिक भुगतान किया है, वह दूसरों से उनके हिस्से का अभिदाय मांग सकता है.

इन वादों में कौन से दस्तावेज संलग्न करें?

गारंटी/प्रतिभूति बंधपत्र, मूल अनुबंध/इनवॉइस, डिलीवरी/सेवा का प्रमाण, मांग/डिमांड नोटिस व प्रत्युत्तर, भुगतान रेकॉर्ड, उपलब्ध सिक्योरिटीज का ब्यौरा, और प्राधिकरण दस्तावेज (कंपनी हो तो).

लिमिटेशन क्या है?

आम तौर पर ऋण/मूल देयता की तारीख/डिफॉल्ट या मांग/नोटिस से गणना होती है; acknowledgment से अवधि नये सिरे से चल सकती है. सटीक अनुच्छेद के अनुसार गणना करें.

क्या कर्जदाता सीधे प्रतिभू पर मुकदमा कर सकता है?

हाँ. प्रतिभू की देयता co‑extensive होने से कर्जदाता प्रधान देनदार या प्रतिभू—किसी के विरुद्ध या दोनों के विरुद्ध एक साथ वसूली कर सकता है, जब तक अनुबंध में प्रतिबंध न हो.

ड्राफ्टिंग में किन बिंदुओं पर जोर दें?

गारंटी/बंधपत्र की वैध निष्पत्ति, डिफॉल्ट का स्पष्ट विवरण, देय राशि का ब्यौरा व ब्याज, सिक्योरिटीज और subrogation का उल्लेख, और discharge के संभावित बचावों का पूर्वानुमान व प्रत्युत्तर.