हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सहानुभूति के आधार पर नियुक्तियाँ कोई लाभ कमाने का जरिया नहीं, बल्कि केवल मृत कर्मचारी के परिवार को आर्थिक कठिनाई से उबारने की एक कल्याणकारी योजना हैं। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अजय भनोट ने उस याचिका को खारिज करते हुए दी जो चंचल सोनकर द्वारा दायर की गई थी, जिनके पति—एक बैंक कर्मचारी—का निधन 2022 में हुआ था।
“सहानुभूति के आधार पर नियुक्तियाँ मृतक के परिजनों के लिए कोई लाभ का माध्यम नहीं हैं। नियोक्ता केवल यह आकलन करने के लिए बाध्य है कि क्या परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी है कि रसोई का चूल्हा जलता रहे।” — न्यायमूर्ति अजय भनोट
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मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता के पति स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत थे और उनका 17.11.2022 को निधन हो गया। उनकी अंतिम मासिक सकल वेतन ₹1,18,800.14 थी। याचिकाकर्ता ने सहानुभूति नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था, जिसे 24.07.2023 को बैंक द्वारा खारिज कर दिया गया।
यह अस्वीकृति बैंक की 2022 की सहानुभूति नियुक्ति योजना के क्लॉज़ 5 के आधार पर की गई। इस नियम के अनुसार, परिवार की मासिक आय सभी स्रोतों से मृतक के अंतिम वेतन के 75% से कम होनी चाहिए। लेकिन इस मामले में परिवार की मासिक आय 75% से अधिक थी, इसलिए अनुरोध खारिज कर दिया गया।
कोर्ट ने दोहराया कि सरकारी नौकरियों और उपक्रमों में नियुक्तियाँ केवल खुले, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया के माध्यम से होनी चाहिए, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 में वर्णित है।
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“सहानुभूति के आधार पर की गई नियुक्तियाँ सामान्य भर्ती प्रक्रिया से एक अपवाद हैं और केवल उसी स्थिति में वैध मानी जाती हैं जब यह संविधानिक नियमों का उल्लंघन न करें।” — इलाहाबाद हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि सहानुभूति पर नियुक्ति कोई अधिकार नहीं है, बल्कि एक छूट है जो केवल अचानक आई वित्तीय विपत्ति में सहायता करने के लिए दी जाती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले उमेश कुमार नागपाल बनाम हरियाणा राज्य का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:
“सहानुभूति पर नियुक्ति का उद्देश्य केवल यह है कि परिवार अचानक आई आर्थिक आपदा से उबर सके… यह नहीं कि परिवार के किसी सदस्य को पद दे दिया जाए, वह भी उस पद पर जिस पर मृतक कर्मचारी था।”
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कोर्ट ने अन्य मामलों का भी उल्लेख किया:
- पुष्पेन्द्र कुमार बनाम शिक्षा निदेशक – जिसमें कहा गया कि सिर्फ तत्काल आर्थिक संकट में ही सहानुभूति पर नियुक्ति दी जानी चाहिए।
- सोम्याश्री बनाम कर्नाटक कोषाध्यक्ष निदेशक – जिसमें कहा गया कि ये नियुक्तियाँ सामान्य नियमों का अपवाद हैं।
- इप्सिता चक्रवर्ती और श्री बिजोन मुखर्जी (कलकत्ता हाईकोर्ट) – जिसमें यह साफ किया गया कि ऐसी नियुक्तियाँ केवल निश्चित योजना और नियमों के अनुसार ही की जा सकती हैं।
“अगर सहानुभूति के आधार पर नियुक्तियों को अधिकार मान लिया गया, तो यह नियुक्तियाँ संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत असंवैधानिक घोषित की जा सकती हैं।” — न्यायमूर्ति अजय भनोट
कोर्ट ने पाया कि बैंक द्वारा पारिवारिक मासिक आय का सही आकलन किया गया था, जिसमें टर्मिनल लाभ, पेंशन, और निवेश पर ब्याज शामिल थे। बैंक द्वारा दिया गया विवरण:
- भूतपूर्व निधि (PF): ₹28,37,574
- ग्रेच्युटी: ₹12,88,350
- अवकाश नकदीकरण: ₹9,50,401
- बीमा निवेश (LIC आदि): ₹1,04,42,704
- कुल नेट कोष: ₹1,55,19,029.12
इस आधार पर मासिक आय का आकलन:
- 80% कोष पर बैंक ब्याज दर (6.10%) पर मासिक ब्याज: ₹63,110.71
- पारिवारिक पेंशन: ₹36,445.00
- कुल मासिक आय: ₹99,555.71
- मृतक का अंतिम वेतन का 75%: ₹89,100.10
चूंकि परिवार की मासिक आय ₹99,555.71 थी जो कि 75% सीमा से अधिक थी, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि आर्थिक संकट का कोई आधार नहीं बनता।
“इस प्रकार, मृत कर्मचारी की मृत्यु के बाद परिवार की आय यह दर्शाती है कि वे आर्थिक संकट में नहीं हैं।” — इलाहाबाद हाईकोर्ट
कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि बैंक का निर्णय नियमों के अनुरूप था और उसमें कोई त्रुटि नहीं है।
“पिछली चर्चा को देखते हुए, चुनौती दिए गए आदेश में कोई खामी नहीं है। याचिका खारिज की जाती है।” — न्यायमूर्ति अजय भनोट
तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक: चंचल सोनकर बनाम चेयरमैन, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और 5 अन्य [रिट - ए संख्या - 1680/2025]