मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्मृति ममता पाठक की आपराधिक अपील को खारिज कर दिया और उनके पति डॉ. नीरज पाठक की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर केंद्रित था, जिसमें अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे दोष साबित किया।
मामले की पृष्ठभूमि
डॉ. नीरज पाठक, एक सेवानिवृत्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी, का शव 1 मई, 2021 को छतरपुर के लोकनाथपुरम स्थित उनके आवास पर मिला था। शुरुआत में मौत को बिजली के झटके से हुआ दुर्घटनाग्रस्त मौत बताया गया था। हालांकि, जांच में कुछ गड़बड़ी सामने आई, जिसके बाद स्मृति ममता पाठक को हत्या के आरोप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत गिरफ्तार किया गया।
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि स्मृति ममता पाठक ने अपने पति को नशीली दवा (ओलान्ज़ापिन गोलियां) खिलाईं और बाद में बिजली के झटके से उनकी हत्या कर दी। अदालत ने चिकित्सकीय रिपोर्ट, गवाहों के बयान और फोरेंसिक निष्कर्षों सहित परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया।
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स्मृति ममता पाठक के बचाव पक्ष ने कई आपत्तियां उठाईं:
एफआईआर दर्ज करने में देरी – घटना के पांच दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई, जिसे बचाव पक्ष ने संदेहास्पद बताया। हालांकि, अदालत ने कहा कि यह देरी धारा 174 सीआरपीसी के तहत प्रारंभिक जांच के कारण थी, जो पारिवारिक विवादों में अनुमेय है।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में विसंगतियां – बचाव पक्ष ने कहा कि पोस्टमार्टम निष्कर्ष अविश्वसनीय थे, क्योंकि शरीर की स्थिति (रिगोर मोर्टिस, सड़न) में विरोधाभास था। लेकिन अदालत ने चिकित्सकीय साक्ष्य में कोई गंभीर खामी नहीं पाई।
बयान पर अभियोग – बचाव पक्ष ने दावा किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत उनका बयान दबाव में लिया गया था। अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि हिरासत के लिए औपचारिक गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है और दबाव का कोई सबूत नहीं मिला।
मकसद और अंतिम बार देखे जाने का सिद्धांत – बचाव पक्ष ने किसी मकसद से इनकार किया और दावा किया कि उनके पति के साथ संबंध सामान्य थे। हालांकि, गवाहों के बयान, जिनमें छंडीलाल बाजपेई (पीडब्ल्यू-4) शामिल थे, ने पिछले विवादों और घटना के तुरंत बाद झांसी की संदिग्ध यात्रा जैसी उनकी गतिविधियों का खुलासा किया।
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हाईकोर्ट ने साक्ष्यों का गहनता से विश्लेषण किया:
चिकित्सकीय साक्ष्य – पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने बिजली के झटके से मौत की पुष्टि की, जिसमें पेट की सामग्री में ओलान्ज़ापिन के निशान मिले। अदालत ने हृदयगति रुकने से प्राकृतिक मौत के दावों को खारिज कर दिया, क्योंकि चोटें बिजली के झटके से मेल खाती थीं।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य – अभियोजन पक्ष ने साबित किया:
- स्मृति ममता पाठक मृतक के साथ अंतिम बार देखी गई थीं।
- उन्होंने मौत की सूचना तुरंत नहीं दी और झूठा बहाना बनाया।
- बरामद साक्ष्य (बिजली का तार, नशीली दवा की पट्टियां) अभियोजन के सिद्धांत की पुष्टि करते थे।
मकसद – गवाहों ने वैवाहिक कलह की गवाही दी, जिसमें वित्तीय विवाद और पूर्व में कैद करने की घटनाएं शामिल थीं।
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अदालत ने कई मील के पत्थर निर्णयों का हवाला दिया:
शरद बिरदीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य – जोर देकर कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य का एक पूर्ण श्रृंखला होना चाहिए जो केवल आरोपी के अपराध की ओर इशारा करे।
सुजीत बिस्वास बनाम असम राज्य – संदेह और उचित संदेह से परे सबूत के बीच अंतर पर प्रकाश डाला।
वरुण चौधरी बनाम राजस्थान राज्य – जोर देकर कहा कि मकसद, हालांकि अनिवार्य नहीं, अभियोजन के मामले को मजबूत करता है।
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:
"परिस्थितियों की श्रृंखला स्पष्ट रूप से स्मृति ममता पाठक की डॉ. नीरज पाठक की हत्या में भागीदारी साबित करती है। बचाव पक्ष के तर्क उचित संदेह पैदा करने में विफल रहे, और ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि निर्णय उचित है।"
अदालत ने अपील को खारिज कर दिया, उनकी जमानत रद्द कर दी और शेष सजा भुगतने के लिए तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
केस का शीर्षक: श्रीमती ममता पाठक बनाम मध्य प्रदेश राज्य
केस संख्या: आपराधिक अपील संख्या 6016/2022