एक महत्वपूर्ण निर्णय में, केरल हाई कोर्ट ने 'मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन्स एक्ट, 2007' के तहत दायित्व की सीमा को स्पष्ट किया। जस्टिस सतीश निनन और जस्टिस पी. कृष्ण कुमार की पीठ ने फैसला सुनाया कि एक निसंतान सीनियर सिटिजन का केवल कानूनी उत्तराधिकारी ही भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी होगा, निचली अदालतों द्वारा अपनाई गई व्यापक व्याख्या को खारिज करते हुए।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में एक निसंतान सीनियर सिटिजन (तीसरी प्रतिवादी) शामिल थीं, जिन्होंने 1992 में अपनी संपत्ति अपने भतीजे को गिफ्ट डीड के माध्यम से हस्तांतरित कर दी थी। भतीजे की मृत्यु 2008 में होने के बाद, संपत्ति उसकी पत्नी (अपीलकर्ता) के पास चली गई। सीनियर सिटिजन ने एक्ट की धारा 4(4) के तहत अपीलकर्ता से भरण-पोषण की मांग की, यह दावा करते हुए कि वह गिफ्ट की गई संपत्ति के कब्जे के कारण उत्तरदायी थी।
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मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल और अपीलीय ट्रिब्यूनल ने इस मांग को स्वीकार किया, लेकिन हाई कोर्ट ने इन फैसलों को पलट दिया और एक्ट के तहत "रिश्तेदार" शब्द की सख्त व्याख्या पर जोर दिया।
कोर्ट ने एक्ट की धारा 4(4) की जांच की, जिसमें कहा गया है:
"कोई भी व्यक्ति जो सीनियर सिटिजन का रिश्तेदार है और जिसके पास पर्याप्त साधन हैं, उसे ऐसे सीनियर सिटिजन का भरण-पोषण करना होगा, बशर्ते वह उस सीनियर सिटिजन की संपत्ति के कब्जे में हो या उसे उसकी संपत्ति विरासत में मिलने वाली हो।"
धारा 2(g) के तहत "रिश्तेदार" को परिभाषित किया गया है:
"निसंतान सीनियर सिटिजन का कोई भी कानूनी उत्तराधिकारी जो नाबालिग नहीं है और उसकी संपत्ति के कब्जे में है या उसकी मृत्यु के बाद उसे विरासत में मिलेगी।"
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हाई कोर्ट ने एक्ट के तहत किसी को "रिश्तेदार"मानने के लिए चार शर्तों की पहचान की:
- सीनियर सिटिजन निसंतान होना चाहिए।
- व्यक्ति संबंधित व्यक्तिगत कानून (जैसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम) के तहत कानूनी उत्तराधिकारी होना चाहिए।
- कानूनी उत्तराधिकारी नाबालिग नहीं होना चाहिए।
- कानूनी उत्तराधिकारी के पास सीनियर सिटिजन की संपत्ति का कब्जा होना चाहिए या उसे विरासत में मिलने वाली होनी चाहिए।
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कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि केवल संपत्ति के कब्जे से दायित्व बनता है, यह कहते हुए:
"कोई व्यक्ति जो कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है, वह सीनियर सिटिजन की संपत्ति के कब्जे या विरासत में मिलने के कारण एक्ट के तहत 'रिश्तेदार' नहीं माना जा सकता।"
अपीलकर्ता, भतीजे की विधवा होने के नाते, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत सीनियर सिटिजन की कानूनी उत्तराधिकारी नहीं थी। इस प्रकार, कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेशों को रद्द कर दिया, उसे भरण-पोषण के दायित्व से मुक्त कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने सीनियर सिटिजन को गिफ्ट डीड की शर्तों को लागू करने जैसे अन्य कानूनी उपायों का अधिकार सुरक्षित रखा।
केस का शीर्षक: एस. शीजा बनाम भरण-पोषण अपीलीय न्यायाधिकरण एवं अन्य
केस संख्या: Writ Appeal संख्या 1301/2019