भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आसिफ @ पाशा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (क्रिमिनल अपील संख्या 3409/2025) के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को लेकर कड़ी टिप्पणी की।
मामले की पृष्ठभूमि
आरोपी आसिफ @ पाशा पर निम्नलिखित धाराओं में मुकदमा चला:
- POCSO अधिनियम की धारा 7 और 8
- IPC की धारा 354, 354ख, 323 और 504
- एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(10)
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मेरठ के ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और यह सजा सुनाई:
- धारा 354 IPC के तहत 1 साल का कठोर कारावास
- POCSO के तहत 4 साल का कठोर कारावास
- SC/ST एक्ट के तहत 4 साल का कठोर कारावास
सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी (concurrently)।
दोषसिद्धि के बाद, अपीलकर्ता ने क्रिमिनल अपील संख्या 8689/2024 के तहत धारा 389 CrPC के अंतर्गत सजा निलंबन की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने कहा:
"अपराध की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए, यह न्यायालय वर्तमान अपील लंबित रहने के दौरान आवेदक/अपीलकर्ता को जमानत पर छोड़ने का कोई उचित आधार नहीं पाता है।"
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6 अगस्त 2025 को आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
"यह याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक और निराशाजनक आदेश से उत्पन्न होती है।"
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य बिंदु:
- अधिकतम सजा केवल 4 साल थी, आजीवन कारावास नहीं।
- भगवान राम शिंदे गोसाई बनाम गुजरात राज्य (1999) मामले में कहा गया था कि निर्धारित अवधि की सजा के मामलों में सजा निलंबन उदारता से दिया जाना चाहिए, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न हो।
- हाई कोर्ट ने केवल प्रॉसिक्यूशन की बात और गवाहियों को दोहराया, जो कि सही तरीका नहीं है।
"अगर अपील के दौरान 4 साल जेल में बीत जाएं, तो अपील निष्फल हो जाएगी और यह न्याय का मज़ाक होगा।"
गलत तरीके से आदेश पारित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि याचिका पर 15 दिनों के भीतर पुनः विचार किया जाए। कोर्ट ने जोर देते हुए कहा:
"हाई कोर्ट यह ध्यान में रखे कि सजा केवल 4 साल की है और सिर्फ तभी इनकार किया जाए यदि कोई स्पष्ट कारण हो कि अपीलकर्ता की रिहाई सार्वजनिक हित में नहीं है।"
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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को आगाह किया कि उसे निर्धारित कानूनी सिद्धांतों को सही तरीके से लागू करना चाहिए और अपील करने वाले के अधिकारों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- हाई कोर्ट को याचिका पर पुनः सुनवाई करनी होगी।
- 15 दिन के भीतर स्पष्ट और उचित आदेश देना होगा।
- सभी लंबित याचिकाएं भी समाप्त मानी जाएंगी।
"ऐसी गलतियां हाई कोर्ट स्तर पर इसलिए होती हैं क्योंकि तय किए गए कानून के सिद्धांतों को सही तरीके से नहीं अपनाया जाता।"-न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन