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13 न्यायाधीशों ने उच्च न्यायालयों पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासनिक अधिकार को चुनौती दी

Shivam Y.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के 13 जजों ने जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध किया, दीवानी मामलों में आपराधिक कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई, और पूर्ण पीठ बैठक की मांग की।

13 न्यायाधीशों ने उच्च न्यायालयों पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासनिक अधिकार को चुनौती दी

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, इलाहाबाद हाईकोर्ट के तेरह जजों ने अपने एक सहयोगी न्यायाधीश जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ हाल ही में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गंभीर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कुमार को सेवानिवृत्ति तक किसी भी आपराधिक मामले की सुनवाई से रोक दिया था, जिसके बाद हाईकोर्ट के भीतर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है।

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इन जजों ने मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर पूर्ण पीठ (Full Court) की बैठक बुलाने का आग्रह किया है। यह पत्र 7 अगस्त 2025 को जारी किया गया था, जिसमें विशेष रूप से 4 अगस्त 2025 के सुप्रीम कोर्ट आदेश के पैरा 24 से 26 का पालन न करने की मांग की गई है।

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"पूर्ण पीठ यह निर्णय लेती है कि 4 अगस्त 2025 के आदेश के पैरा 24 से 26 में दिए गए निर्देशों का पालन नहीं किया जाएगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट पर प्रशासनिक अधीक्षण का अधिकार नहीं है।"
- इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों द्वारा भेजा गया पत्र

जजों ने इस आदेश की भाषा और शैली को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कुमार को एक दीवानी विवाद में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था।

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"हमें समझ में नहीं आता कि हाईकोर्ट स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गलत हो रहा है... ऐसे बेहूदा और त्रुटिपूर्ण आदेशों को पारित करना माफ़ी के योग्य नहीं है।"
- सुप्रीम कोर्ट की पीठ: जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन

मामला एक बिक्री लेनदेन में बकाया राशि से जुड़ा था, जिसमें शिकायतकर्ता ने आपराधिक विश्वासघात का केस दर्ज करवाया था, जबकि यह विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानूनी रूप से गलत बताया और कहा कि यह आपराधिक कानून के दुरुपयोग का मामला है।

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यह घटना भारत की न्यायिक व्यवस्था में बढ़ती एक गंभीर समस्या को उजागर करती है - दीवानी मामलों में आपराधिक कानून का दुरुपयोग। इसमें चेक बाउंस, धन वसूली, संपत्ति विवाद, वसीयत से जुड़ी समस्याएं और व्यावसायिक लेनदेन जैसे मामले शामिल हैं।

इस वर्ष अप्रैल में, तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस प्रवृत्ति को लेकर कड़ी फटकार लगाई थी। एक सुनवाई के दौरान, जिसमें दो व्यक्तियों पर चेक बाउंस का केस था और उनके खिलाफ आपराधिक विश्वासघात, धमकी और आपराधिक साजिश जैसे आरोप भी लगाए गए थे, उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि सामान्य दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है।

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