हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक 16 वर्षीय आरोपी की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए उसे वयस्क के रूप में ट्रायल करने का आदेश बरकरार रखा है। मामला फरवरी 2021 का है, जिसमें आरोपी पर सात वर्षीय बच्ची से बलात्कार का आरोप है।
अभियोग पक्ष के अनुसार, पीड़िता के पिता मेहमानों को छोड़ने गए थे, और उसी समय वह आरोपी के घर खेलने गई। कुछ समय बाद पीड़िता को पेट दर्द हुआ, और पूछताछ पर उसने बताया कि आरोपी उसे गौशाला में ले गया और बलात्कार किया। फिर आरोपी उसे अपने घर ले गया, पानी दिया और दोबारा बलात्कार किया। उसने खून साफ किया और धमकी दी कि घटना किसी को न बताए।
किशोर न्याय बोर्ड (JJB) ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 15 के तहत प्रारंभिक आकलन किया। मेडिकल बोर्ड ने आरोपी का IQ 92 पाया, जो मानसिक क्षमता को दर्शाता है। मेडिकल रिपोर्ट में शारीरिक अक्षमता का कोई संकेत नहीं था। सामाजिक जांच रिपोर्ट में पाया गया कि आरोपी स्वस्थ पारिवारिक वातावरण में रह रहा था और किसी प्रकार की मानसिक बीमारी या उपेक्षा के संकेत नहीं थे।
आरोपी ने अपील में तर्क दिया कि आकलन धारा 14(3) में निर्धारित तीन महीने की समयसीमा से अधिक समय में किया गया और केवल मानसिक क्षमता का मूल्यांकन हुआ। उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के X (Juvenile) v. State of Karnataka (2024) के फैसले का हवाला देते हुए कहा:
“धारा 14(3) में दिया गया समय जघन्य अपराधों में अनिवार्य नहीं बल्कि निर्देशात्मक है।”
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अदालत ने आरोपी के बार-बार हमले, सबूत छुपाने और धमकी देने की प्रवृत्ति को सोची-समझी कार्रवाई और परिणामों की जागरूकता का प्रमाण माना। Sunil v. State of Madhya Pradesh (2021) का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि बलात्कार बिना विशेष ज्ञान के संभव नहीं है।
हाईकोर्ट ने पाया कि निचली अदालतों के आदेश में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है और आरोपी वयस्क के रूप में ट्रायल का सामना करेगा।
Case Title: V (a juvenile) V. State of H.P.
Case No.: Cr. Revision No. 392 of 2025