इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की है। यह मामला तब उठा जब वह दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में सेवा दे रहे थे और उनके सरकारी आवास में आग लगने की घटना में जली हुई मुद्रा बरामद हुई।
न्यायाधीश ने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया और कहा कि यह रकम किसी ने उन्हें फंसाने के उद्देश्य से रखी होगी। हालांकि, इस घटना ने उनके आचरण पर सवाल खड़े कर दिए, जिससे भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1999 में अपनाई गई "इन-हाउस प्रक्रिया" के तहत आंतरिक जांच शुरू करवाई।
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एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसने गवाहों के बयान लेकर जांच की और पाया कि न्यायाधीश का आचरण हटाने योग्य गंभीरता का है। इसके बाद CJI ने न्यायाधीश को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प दिया। न्यायाधीश ने इसे अन्यायपूर्ण करार दिया और सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया कि "इन-हाउस प्रक्रिया" को किसी भी न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश करने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। उन्होंने प्रक्रिया की दो धाराओं - 5(b) और 7(ii) - को संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी।
श्री सिब्बल ने कहा:
"संविधान केवल संसद के माध्यम से न्यायाधीश को हटाने की अनुमति देता है, न कि किसी समिति की रिपोर्ट या CJI की सलाह से।"
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जांच रिपोर्ट और वीडियो को सार्वजनिक करने से न्यायाधीश की प्रतिष्ठा धूमिल हुई, जो अनुच्छेद 21 के तहत उनके सम्मान के अधिकार का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि न्यायाधीश को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया केवल संसद के माध्यम से हो सकती है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया:
"भारत का मुख्य न्यायाधीश केवल एक अग्रेषण प्राधिकारी नहीं है, बल्कि संस्था की गरिमा बनाए रखने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।"
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पीठ ने कहा कि CJI द्वारा रिपोर्ट राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को भेजने का अर्थ यह नहीं है कि वह संसद को प्रभावित करता है। कोर्ट ने कहा:
"इन-हाउस प्रक्रिया' महाभियोग का विकल्प नहीं, बल्कि न्यायिक आचरण बनाए रखने का साधन है।"
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी जांचा कि क्या "जज (संरक्षण) अधिनियम, 1985" इस मामले में लागू होता है। कोर्ट ने माना कि इस अधिनियम की धारा 3(2) के तहत इन-हाउस प्रक्रिया के तहत की गई आंतरिक जांच पूरी तरह वैध है।
केस का शीर्षक: XXX बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस संख्या: Writ Petition (Civil) संख्या 699/2025