पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में सत्येंद्र नारायण सिंह की बर्खास्तगी रद्द कर दी। वह जिला बाल संरक्षण इकाई में सहायक निदेशक और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी के पद पर कार्यरत थे। अक्टूबर 2018 में ₹50,000 की रिश्वत लेते हुए कथित रूप से पकड़े जाने के बाद उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि, अदालत ने पाया कि बिहार सरकार द्वारा की गई विभागीय कार्रवाई में गंभीर प्रक्रियागत त्रुटियां थीं।
"निलंबन के बावजूद, जीविका भत्ता न देना अमानवीय कृत्य है… यह धीरे-धीरे जहर देने जैसा है…"
- सुप्रीम कोर्ट, कैप्टन एम. पॉल एंथोनी बनाम भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड
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मामले की पृष्ठभूमि
सत्येंद्र नारायण सिंह को जुलाई 2016 में विजिलेंस ट्रैप केस के आधार पर निलंबित किया गया था। लेकिन, आरोप पत्र मई 2017 में जारी किया गया, जो नियम 7 के अनुसार निर्धारित 3 माह की समय सीमा का उल्लंघन था। इस दौरान उन्हें कोई जीविका भत्ता भी नहीं दिया गया।
पूरी जांच केवल विजिलेंस रिपोर्ट पर आधारित थी, ना कोई गवाह पेश हुआ, ना ही कोई ठोस दस्तावेज। सिंह ने आरोप को झूठा बताया और कहा कि शिकायतकर्ता ने उन्हें फंसाया क्योंकि उन्होंने उसकी पत्नी के आंगनबाड़ी केंद्र में अनियमितताओं पर कार्रवाई की थी।
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न्यायमूर्ति हरीश कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने पाया कि:
- पूरी जांच एकतरफा थी और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ।
- कोई मौखिक गवाह प्रस्तुत नहीं हुआ।
- जांच अधिकारी ने साक्ष्य प्रमाणित नहीं किए और प्रस्तुतिकरण अधिकारी की भूमिका भी स्पष्ट नहीं की।
- बर्खास्तगी आदेश में दूसरी शो-कॉज नोटिस के उत्तर को नहीं माना गया।
- कोई प्रतिपरीक्षण नहीं हुआ और पूरा मामला केवल विजिलेंस रिपोर्ट व एफआईआर पर आधारित था।
"जांच अधिकारी विभाग का प्रतिनिधि नहीं बल्कि स्वतंत्र निर्णायक होता है। निष्पक्ष जांच अनिवार्य है।"
- सुप्रीम कोर्ट, सरोज कुमार सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
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अदालत ने यह स्पष्ट किया कि भले ही भ्रष्टाचार गंभीर आरोप हो, लेकिन ऐसी कार्रवाइयों में कानून सम्मत प्रक्रिया का पालन जरूरी है। कोर्ट ने रूप सिंह नेगी बनाम पंजाब नेशनल बैंक व उमेश कुमार सिन्हा बनाम बिहार राज्य जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।
हाईकोर्ट ने माना कि बर्खास्तगी आदेश “संक्षिप्त और अस्पष्ट” था और उसमें पर्याप्त कारण नहीं बताए गए। कोर्ट ने 10.10.2018 का बर्खास्तगी आदेश रद्द करते हुए अभ्यर्थी को सेवा में बहाल कर दिया।
हालांकि, राज्य सरकार को यह स्वतंत्रता दी गई कि अगर आपराधिक मामला उनके खिलाफ जाता है तो वह आगे उचित कार्रवाई कर सकती है। जहां तक वेतन की बात है, कोर्ट ने इसे संबंधित नियमों के अनुसार विचार करने के लिए छोड़ दिया।
केस का शीर्षक: सत्येंद्र नारायण सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस संख्या: सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस संख्या 15706/2021