मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गूंडा एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए प्रदीप (29 वर्ष) को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और संबंधित अधिकारी ने अपने दायित्वों का समुचित तरीके से पालन नहीं किया। यह निर्णय एच.सी.पी. नं. 2828/2024 में माननीय न्यायमूर्ति एम.एस. रमेश और न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मीनारायणन की खंडपीठ ने सुनाया।
यह हैबियस कॉर्पस याचिका प्रदीप की मां मल्लिगा द्वारा दायर की गई थी, जिसमें चेन्नई पुलिस आयुक्त द्वारा 19.09.2024 को जारी की गई गिरफ्तारी के आदेश को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी असंवैधानिक थी। मुख्य तर्क यह था कि गिरफ्तारी का प्रस्ताव और संबंधित दस्तावेज (लगभग 1000 पन्ने) उसी दिन अधिकारी को प्राप्त हुए जिस दिन आदेश पारित किया गया। कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए कहा:
"इतनी बड़ी मात्रा में दस्तावेजों की एक ही दिन में जांच कर आदेश पारित करना मानवीय रूप से संभव नहीं है।"
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अतिरिक्त महाधिवक्ता का यह दावा कि प्रस्ताव पहले भेजा गया था, कोर्ट ने खारिज कर दिया क्योंकि उसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं था।
न्यायालय ने टिप्पणी की:
"हम समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे एक ही दिन में 14 अभियुक्तों के 14,000 पन्नों की जांच कर सभी के विरुद्ध आदेश पारित किया गया।"
कोर्ट ने कहा कि निवारक गिरफ्तारी का उद्देश्य आरोपी की पृष्ठभूमि, उसकी हिरासत की स्थिति, रिहा होने की संभावना और फिर से अपराध करने की आशंका की समीक्षा करना होता है, जिसे नजरअंदाज किया गया।
कोर्ट ने भविष्य में इस गिरफ्तारी के आदेश को जमानत का आधार बनाए जाने पर स्पष्ट किया:
"जमानत कोर्ट निवारक गिरफ्तारी के आदेश के रद्द होने को जमानत देने का आधार न बनाएं। दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग हैं।"
कोर्ट ने दीपक यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा प्रह्लाद सिंह भाटी बनाम दिल्ली राज्य सहित अनेक सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देकर जमानत के सिद्धांतों की पुष्टि की।
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कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी आदेश विचार के बिना पारित हुआ:
"दिनांक 19.09.2024 का गिरफ्तारी आदेश रद्द किया जाता है। प्रदीप को तुरंत रिहा किया जाए, यदि वह किसी अन्य मामले में हिरासत में नहीं है।"
केस का शीर्षक: मल्लिगा बनाम सरकार के सचिव एवं अन्य
केस संख्या: H.C.P. संख्या 2828/2024