15 जुलाई 2025 को, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। अदालत ने लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन (LNIPE), ग्वालियर के पूर्व कुलपति को एक महिला योग प्रशिक्षक को ₹35 लाख मुआवज़ा देने का आदेश दिया और राज्य सरकार को FIR दर्ज करने में तीन साल की देरी पर ₹5 लाख का जुर्माना भरने को कहा।
याचिकाकर्ता की आपबीती
महिला 2015 से LNIPE में योग प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत थीं। मार्च 2019 में, उन्होंने आरोप लगाया कि कुलपति दिलीप कुमार दुर्वेहा ने उन्हें अनुचित तरीके से छुआ। अपने उच्च पद के कारण, पहले उन्होंने शिकायत दर्ज नहीं कराई। अगस्त 2019 में, जब कुलपति ने एक अवकाश से संबंधित शिकायत पर उन्हें बुलाया, तब उन्होंने यौन लाभ की मांग की।
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इसके बाद, अक्टूबर 2019 में उन्होंने खेल मंत्रालय को मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न की शिकायत सौंपी। लेकिन संस्थान ने कोई कार्यवाही नहीं की। इसके उलट, अन्य विभागाध्यक्षों और फैकल्टी सदस्यों ने उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
अदालत की कड़ी टिप्पणियां
“यह अदालत यह मानती है कि याचिकाकर्ता को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और संस्थान ने समय पर न्याय देने की कोई कोशिश नहीं की... संस्थान ने अपना प्रशासन ऐसे व्यक्ति के हाथ में दे दिया जो किसी भी सेवा में बने रहने योग्य नहीं था।”
पुलिस की लापरवाही
“पुलिस अधिकारियों ने शिकायत पर समय पर कार्यवाही नहीं की... और तीन साल तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की, वो भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद।”
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याचिकाकर्ता द्वारा CrPC की धारा 156(3) के तहत कई बार शिकायतें दी गईं, लेकिन FIR तब जाकर दर्ज की गई जब सुप्रीम कोर्ट ने SLP स्वीकार करते हुए निर्देश दिया। अदालत ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि संज्ञेय अपराध की सूचना पर तत्काल FIR दर्ज की जानी चाहिए।
अदालती आदेश और मुआवज़ा
- ₹35 लाख – पूर्व कुलपति को महिला को वेतन की हानि, मानसिक पीड़ा, प्रतिष्ठा की हानि और भावनात्मक आघात के लिए देना होगा
- ₹1 लाख – संस्थान पर समय पर कार्रवाई न करने के लिए
- ₹5 लाख – राज्य सरकार को देना होगा, जिसे दोषी पुलिस अधिकारियों से वसूला जाएगा
- यदि याचिकाकर्ता चाहें तो उन्हें उनके पसंद के किसी अन्य संस्थान में स्थानांतरित करने का भी निर्देश