14 अक्टूबर 2025 को दिए गए एक विस्तृत निर्णय में पटना हाईकोर्ट ने आलोक कुमार, एक मर्चेंट नेवी अधिकारी, और उनकी पत्नी अनुपमा सिंह के 15 साल पुराने विवाह को “अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका संबंध” बताते हुए समाप्त कर दिया। मुख्य न्यायाधीश पी. बी. बाजंथरी और न्यायमूर्ति एस. बी. पी. डी. सिंह की खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया कि कुमार छह महीने के भीतर 90 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण के रूप में अदा करें।
पृष्ठभूमि
यह विवाह 2 दिसंबर 2010 को मुजफ्फरपुर में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। परंतु कुछ ही महीनों में संबंध बिगड़ गए - दो महीने के भीतर अनुपमा अपने ससुराल से चली गईं।
आलोक कुमार ने मानसिक क्रूरता और परित्याग का हवाला देते हुए 2013 में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की अर्जी दायर की। उन्होंने आरोप लगाया कि अनुपमा ने उनके साथ रहने से इनकार किया, आत्महत्या की धमकी दी, और बिना जानकारी दिए अपने सारे सामान के साथ मायके चली गईं।
वहीं पत्नी अनुपमा ने पलटवार करते हुए ससुराल पक्ष पर दहेज उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना था कि उनके पिता, जो सरकारी सेवा में थे, ने यहां तक कि गाजियाबाद में खरीदा गया एक फ्लैट भी बेच दिया ताकि ससुराल वालों की मांगें पूरी हो सकें।
उनके शब्दों में -
"मुझे दिसंबर 2011 में जबरन घर से निकाल दिया गया, और मेरे पति ने कभी मेरा साथ नहीं दिया।"
परिवार न्यायालय ने 2018 में आलोक की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की।
न्यायालय के अवलोकन
अपील की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने स्वीकार किया कि वे एक दशक से अधिक समय से अलग रह रहे हैं। अदालत ने नोट किया कि मध्यस्थता के कई प्रयास - पहले परिवार न्यायालय में और बाद में उच्च न्यायालय के मध्यस्थता केंद्र में - असफल रहे।
न्यायमूर्ति सिंह ने CAV निर्णय लिखते हुए टिप्पणी की कि यह विवाह
"अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है, और किसी भी पक्ष को जबरन साथ रहने के लिए बाध्य करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"
पीठ ने दोनों की आर्थिक असमानता पर भी ध्यान दिया - आलोक, जो अब जहाज के कप्तान हैं, ₹5–6 लाख प्रति माह कमाते हैं, जबकि अनुपमा के पास कोई आय नहीं है और वह वृद्ध माता-पिता पर निर्भर हैं।
दिलचस्प रूप से, आलोक ने शुरू में ₹50 लाख का एकमुश्त निपटान प्रस्तावित किया था, जिसे अनुपमा ने ठुकराते हुए ₹90 लाख और एक आवासीय व्यवस्था की मांग की।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों - राजनेश बनाम नेहा (2021) और प्रवीन कुमार जैन बनाम अंजु जैन (2024) - का हवाला दिया, जिनमें भरण-पोषण तय करते समय सामाजिक स्थिति, पत्नी की आवश्यक जरूरतें और विवाह की अवधि जैसे कारकों पर विचार का निर्देश दिया गया है।
उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के कथन को उद्धृत करते हुए कहा -
"भरण-पोषण की राशि प्रत्येक मामले में भिन्न होगी, परंतु यह सुनिश्चित होना चाहिए कि पत्नी गरिमा और सुविधा से जी सके, न कि अभाव में।"
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निर्णय
अंततः, पटना हाईकोर्ट ने आलोक कुमार की अपील स्वीकार करते हुए परिवार न्यायालय के 2018 के फैसले को रद्द किया और विवाह को तलाक की डिक्री के साथ समाप्त कर दिया।
आदेश में कहा गया -
“02.12.2010 को संपन्न विवाह तलाक की डिक्री के साथ समाप्त किया जाता है।”
भरण-पोषण के प्रश्न पर न्यायालय ने टिप्पणी की -
“यह न्यायालय का दायित्व है कि यह सुनिश्चित करे कि पत्नी गरिमा और सुविधा के साथ जीवनयापन करे। जीवन विलासिता भरा न हो, परंतु उसे अभाव में भी नहीं रहना चाहिए।”
तदनुसार, न्यायालय ने आलोक कुमार को आदेश दिया कि वह छह माह के भीतर ₹90 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण के रूप में अदा करें, अन्यथा इस राशि पर 6% वार्षिक ब्याज लगेगा।
सभी लंबित अंतरिम याचिकाएं निपटा दी गईं, जिससे सात साल पुरानी अपील (म.अ. संख्या 996/2018) का अंत हुआ।
Case Title: Alok Kumar vs. Smt. Anupama Singh
Case Type & Number: Miscellaneous Appeal No. 996 of 2018
Date of Judgment: October 14, 2025
Advocates Appearing:
- For the Appellant:
- Mr. Sriram Krishna, Advocate
- Mr. Prabhat Kumar Singh, Advocate
- For the Respondent:
- Mr. Vivek Prasad, Advocate
- Ms. Y. Madhavi, Advocate