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नशा मामले में पुख्ता साक्ष्य के अभाव में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने महेश ठाकुर को जमानत दी

Prince V.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत दर्ज मामले में महेश ठाकुर को जमानत दी, यह कहते हुए कि उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है और सह-आरोपी के बयान को कानूनी साक्ष्य नहीं माना जा सकता।

नशा मामले में पुख्ता साक्ष्य के अभाव में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने महेश ठाकुर को जमानत दी

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 29 जुलाई 2025 को सुनाए गए आदेश में महेश ठाकुर को नियमित जमानत प्रदान की। यह मामला एनडीपीएस अधिनियम की धारा 21 और 29 के तहत पुलिस थाना न्यू शिमला में दर्ज एफआईआर नंबर 19/2025 से संबंधित था। इसमें आरोप था कि आरोपी और सह-आरोपी के पास से भारी मात्रा में हेरोइन बरामद हुई है।

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महेश ठाकुर ने अदालत में दलील दी कि वह केवल सह-आरोपी अतुल बोहरा के घर पर एक सामान्य मेहमान के रूप में गए थे और उस घर से मिले नशे से उनका कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि उन्हें झूठा फंसाया गया है।

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महेश ठाकुर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पीयूष वर्मा ने तर्क दिया कि बरामदगी सह-आरोपी के घर से हुई थी और महेश ठाकुर का उससे कोई सीधा संबंध नहीं है। उन्होंने शुभम बिटालु बनाम राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि एक सामान्य मेहमान को महज़ उपस्थिति के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री जीतेंद्र शर्मा ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पुलिस ने हेरोइन के साथ ₹44,000 नकद और जली हुई ₹10 की मुद्रा बरामद की है। पुलिस के अनुसार दोनों आरोपियों ने पूछताछ में स्वीकार किया कि वे नशे की लत में हैं और ‘गोपी’ नामक व्यक्ति से हेरोइन खरीदते थे, हालांकि गोपी को अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है। माननीय न्यायाधीश श्री राकेश काईंथला ने आदेश में कहा कि आरोपी के विरुद्ध कोई प्रत्यक्ष सबूत उपलब्ध नहीं है, केवल उपस्थिति के आधार पर गिरफ्तारी उचित नहीं है। उन्होंने शुभम बिटालु के फैसले का हवाला देते हुए कहा:

“सिर्फ़ आरोपी की उपस्थिति, उसके अपराध से जुड़े होने का प्रमाण नहीं हो सकती। जब तक कोई ठोस साक्ष्य न हो, तब तक उसे हिरासत में रखना न्यायसंगत नहीं।”

अदालत ने सह-आरोपी के पुलिस के समक्ष दिए गए बयान को भी सबूत के रूप में मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य और सुरिंदर कुमार खन्ना बनाम राजस्व खुफिया निदेशालय जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा:

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पुलिस अधिकारी को दिया गया बयान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के तहत अमान्य है और अभियोजन इसके आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता।

इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा कि मात्र आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर किसी को हिरासत में नहीं रखा जा सकता, जब तक कि उसके खिलाफ प्राथमिक दृष्टि से कोई मामला न बनता हो।

जमानत की शर्तें
अदालत ने ₹1,00,000 के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की एक ज़मानत के आधार पर आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही निम्नलिखित शर्तें लगाईं:

आरोपी न तो किसी गवाह को डराएगा और न ही किसी साक्ष्य को प्रभावित करेगा।अगर आरोप पत्र दाखिल होता है, तो वह नियमित रूप से मुकदमे में उपस्थित रहेगा और अनावश्यक स्थगन नहीं मांगेगा।