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सुप्रीम कोर्ट ने जिला न्यायाधीश पदोन्नति के लिए एलडीसीई कोटा बढ़ाया, अनुभव की आवश्यकता घटाई

21 May 2025 9:09 AM - By Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने जिला न्यायाधीश पदोन्नति के लिए एलडीसीई कोटा बढ़ाया, अनुभव की आवश्यकता घटाई

न्यायिक पदोन्नतियों से जुड़ा एक बड़ा फैसला लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) से डिस्ट्रिक्ट जज के पद पर पदोन्नति के लिए लिमिटेड डिपार्टमेंटल कॉम्पेटिटिव एग्जामिनेशन (LDCE) का कोटा 10% से बढ़ाकर 25% कर दिया है। यह निर्देश पूरे देश में लागू होगा और सभी हाई कोर्ट तथा राज्य सरकारों को अपने सेवा नियमों में बदलाव करने के लिए कहा गया है।

"देश के सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारें एलडीसीई के लिए पदोन्नति कोटा 25% करने हेतु संबंधित सेवा नियमों में संशोधन करें," कोर्ट ने निर्देश दिया।

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यह निर्देश ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन मामले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एजी मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने दिया।

इसके साथ ही, एलडीसीई के लिए न्यूनतम योग्यता सेवा अवधि को भी घटाकर तीन वर्ष कर दिया गया है। अब एलडीसीई के लिए आवेदन करने वाले सिविल जज (सीनियर डिवीजन) को कुल 7 वर्षों की सेवा पूरी करनी होगी (जिसमें जूनियर और सीनियर डिवीजन दोनों शामिल हैं)।

एक और महत्वपूर्ण फैसला यह रहा कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की कैडर में 10% पद आरक्षित किए जाएंगे, जिससे सिविल जज (जूनियर डिवीजन) को तीन साल की सेवा पूरी करने के बाद त्वरित पदोन्नति के लिए एलडीसीई में भाग लेने का मौका मिलेगा।

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"सिविल जज (सीनियर डिवीजन) कैडर में 10% पद त्वरित पदोन्नति के लिए आरक्षित किए जाएंगे… एलडीसीई में शामिल होने के लिए न्यूनतम सेवा अवधि तीन वर्ष होगी," कोर्ट ने कहा।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के लिए न्यूनतम तीन साल की वकालत आवश्यक होगी, जैसा पहले की व्यवस्था में था।

यदि एलडीसीई के लिए आरक्षित कोई पद खाली रह जाए, तो उसे मैरिट-कम-सीनियॉरिटी के आधार पर उसी वर्ष की नियमित पदोन्नति प्रक्रिया से भरा जाएगा।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि एलडीसीई के लिए रिक्तियां कैडर स्ट्रेंथ के आधार पर ही गणना की जाएं। जहां ऐसा नहीं हो रहा है, वहां संबंधित नियमों में बदलाव अनिवार्य होगा।

अंत में, कोर्ट ने यह भी कहा कि जिन राज्यों में उपयुक्त नियम मौजूद नहीं हैं या वे पर्याप्त नहीं हैं, वहां नई नियमावली बनाई जाए या मौजूदा नियमों में संशोधन किया जाए, जिससे किसी उम्मीदवार की उपयुक्तता का मूल्यांकन सही से किया जा सके। इस मूल्यांकन में निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल किया जाना चाहिए:

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  • विधि ज्ञान और दिए गए निर्णयों की गुणवत्ता
  • पिछले पांच वर्षों के एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट)
  • मामलों के निपटान की दर
  • साक्षात्कार (वाइवा) में प्रदर्शन
  • सामान्य जागरूकता और संवाद कौशल

“सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारें उपयुक्त नियम बनाएं या संशोधित करें… जिसमें विधि ज्ञान, निर्णय गुणवत्ता, एसीआर, निपटान दर, वाइवा और संवाद क्षमता जैसे मापदंड हों,” कोर्ट ने कहा।

यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली में योग्यता आधारित त्वरित पदोन्नति और प्रभावी प्रशासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

मामला: अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ (न्यूनतम अभ्यास और एलडीसीई मुद्दा)

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