सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यूनाइटेड किंगडम के व्यापारी एलन मर्विन आर्थर स्टीफेंसन द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने भारतीय सहयोगी जे. जेवियर जयराजन के साथ साझेदारी विवाद में एक मध्यस्थ (arbitrator) नियुक्त करने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि यह दावा “स्पष्ट रूप से समय-सीमा से बाहर” है और आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 11(5) के तहत ऐसी कोई गुंजाइश नहीं बनती।
पृष्ठभूमि
स्टीफेंसन, जो यूनाइटेड किंगडम में रहते हैं, ने 2014 में जयराजन के साथ एक रियल एस्टेट साझेदारी में प्रवेश किया था। इससे पहले 2008 में जयराजन और स्टीफेंसन की बहन के बीच हुई साझेदारी समाप्त हो चुकी थी। नई साझेदारी का उद्देश्य सर्विस अपार्टमेंट्स के निर्माण का व्यवसाय था, और स्टीफेंसन के अनुसार उन्होंने परियोजना में ₹2.31 करोड़ का निवेश किया था।
समझौते के अनुसार, लाभ का 75% हिस्सा उन्हें मिलना था। लेकिन परियोजना आगे नहीं बढ़ी, और 4 मई 2016 को खरीदी गई जमीन से जुड़े लेनदेन पर विवाद खड़ा हो गया।
दिसंबर 2020 में स्टीफेंसन ने कानूनी नोटिस भेजकर मध्यस्थता की मांग की, लेकिन जयराजन का कहना था कि नोटिस बहुत देर से दायर किया गया है। उनका तर्क था कि 2016 के लेनदेन के इतने वर्षों बाद वसूली का कोई दावा पहले ही समय-सीमा से बाहर हो चुका था।
अदालत की टिप्पणियां
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से हुई देरी पर विशेष ध्यान दिया। “नोटिस की तारीख पर ही दावा समय-सीमा से बाहर था,” न्यायमूर्ति चंद्रन ने आदेश पढ़ते हुए कहा।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि स्टीफेंसन ने 2017 में धोखाधड़ी और ठगी का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे बाद में बंद कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु के मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के तहत मामला दायर किया, जिसे जून 2017 में खारिज कर दिया गया।
अदालत ने यह भी नोट किया कि अगस्त 2017 में ₹1 लाख की आंशिक राशि प्राप्त होने के बावजूद, दिसंबर 2020 में भेजा गया आर्बिट्रेशन नोटिस “कानूनी रूप से अनुमत अवधि से बहुत बाद में” जारी किया गया।
पीठ ने कहा, “इस देरी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।” न्यायाधीशों ने यह भी जोड़ा कि सीमाबंदी कानून (law of limitation) का उद्देश्य पुराने दावों को रोकना है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता का पहले का प्रयास कर्नाटक हाई कोर्ट में भी असफल रहा था, जिसने जनवरी 2025 में याचिका खारिज करते हुए उन्हें अन्य उपाय अपनाने की छूट दी थी।
निर्णय
मामले को समाप्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मध्यस्थता का नोटिस और याचिका दोनों ही “समय-सीमा की अवधि के काफी बाद दायर” किए गए थे।
इसलिए, आर्बिट्रेशन याचिका (संख्या 21/2025) को खारिज कर दिया गया। आदेश में कहा गया -“आर्बिट्रेशन याचिका, मध्यस्थ नियुक्त करने के लिए, खारिज की जाती है।”
इसके साथ ही वर्षों से चल रहा यह साझेदारी विवाद समाप्त हो गया।
Case Title: Alan Mervyn Arthur Stephenson v. J. Xavier Jayarajan
Case Type: Arbitration Petition No. 21 of 2025
Date of Judgment: October 14, 2025