भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में, मद्रास हाईकोर्ट के उस निर्णय को निरस्त कर दिया जिसमें एक 100% स्थायी रूप से विकलांग हुए 21 वर्षीय दुर्घटना पीड़ित को दिए गए मुआवजे को घटा दिया गया था। अदालत ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) द्वारा दिए गए मुआवजे को बहाल किया और आगे बढ़ाया, यह मानते हुए कि दावेदार की जीवनभर की चिकित्सा ज़रूरतें और कठिनाइयाँ हैं।
मामला पृष्ठभूमि
यह मामला 3 जुलाई 2011 की दुर्घटना से जुड़ा है, जब काविन नामक दावेदार कोयंबटूर से चेन्नई जा रही एक ओमनी बस में यात्रा कर रहे थे। बस चालक श्री बालाजी की लापरवाह ड्राइविंग के कारण बस सड़क किनारे इमली के पेड़ से टकरा गई, जिससे कई यात्री घायल हुए। काविन, जो उस समय 21 वर्ष के थे और उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, गंभीर रूप से घायल हुए और पूरी तरह से विकलांग (vegetative state) हो गए।
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उन्होंने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत दावा दायर करते हुए ₹1 करोड़ का मुआवजा मांगा। मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद, दावा न्यायाधिकरण ने ₹67.83 लाख का मुआवजा विभिन्न मदों के तहत दिया, जिनमें चिकित्सा खर्च, भविष्य की आय का नुकसान, भविष्य की चिकित्सा देखभाल, परिचर (attendant) शुल्क और परिवार के कष्ट शामिल थे।
बीमा कंपनी और दावेदार, दोनों ने इस पुरस्कार को चुनौती दी। मद्रास हाईकोर्ट (2022) ने लापरवाही और उत्तरदायित्व के निष्कर्षों को बरकरार रखा, लेकिन कुल मुआवजा घटाकर ₹48.83 लाख कर दिया। इसमें कटौती की गई थी:
- भविष्य की चिकित्सा खर्चों में,
- परिचर (attendant) शुल्क में,
- परिवार के दर्द और कष्ट में, और
- स्थायी विकलांगता मुआवजे में।
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इसी कटौती के कारण दावेदार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया ने कहा कि हाईकोर्ट ने बिना उचित कारण के मुआवजा घटा दिया। अदालत ने जोर देकर कहा कि 100% विकलांग पीड़ित को जीवनभर देखभाल और वित्तीय सहायता की ज़रूरत होती है।
फैसले के मुख्य बिंदु:
- भविष्य की चिकित्सा खर्चे: बढ़ाकर ₹15 लाख किए गए।
- जीवन और सुविधाओं के आनंद की हानि: ₹3 लाख बहाल किए गए।
- परिचर शुल्क: बढ़ाकर ₹10 लाख किए गए, क्योंकि पीड़ित को जीवनभर सहारे की आवश्यकता होगी।
- परिवार का दर्द और कष्ट: ₹3 लाख बहाल किए गए, पूर्व न्यायिक निर्णयों का पालन करते हुए।
- स्थायी विकलांगता: अलग से ₹5 लाख दिए गए, जो आय हानि से अलग है।
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“दावेदार द्वारा झेली गई स्थायी विकलांगता को देखते हुए, उसे जीवनभर चिकित्सा देखभाल और सहारे की आवश्यकता होगी। हाईकोर्ट द्वारा की गई कटौती अनुचित थी।” – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कटौती को निरस्त करते हुए माना कि दावेदार ₹82.83 लाख के मुआवजे का हकदार है। यह राशि 7.5% वार्षिक ब्याज सहित चार सप्ताह के भीतर दी जानी होगी। अपील स्वीकार कर ली गई और पक्षकारों को अपने-अपने खर्च वहन करने का निर्देश दिया गया।
केस का शीर्षक: कविन बनाम पी. श्रीमणी देवी एवं अन्य
केस का प्रकार: सिविल अपील संख्या 3132-3133/2023
निर्णय की तिथि: 22 अगस्त 2025