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गुजरात के संविदा सहायक प्राध्यापकों को सुप्रीम कोर्ट का तोहफ़ा, मिलेगा न्यूनतम वेतनमान

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के संविदा सहायक प्राध्यापकों को राहत दी। अब उन्हें नियमित प्राध्यापकों का न्यूनतम वेतनमान और बकाया राशि ब्याज सहित मिलेगी।

गुजरात के संविदा सहायक प्राध्यापकों को सुप्रीम कोर्ट का तोहफ़ा, मिलेगा न्यूनतम वेतनमान

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने गुजरात के संविदा सहायक प्राध्यापकों के लंबे समय से चले आ रहे वेतन विवाद पर बड़ा फ़ैसला सुनाया है। “शाह समीर भरतभाई एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य” मामले में कोर्ट ने समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत को दोहराते हुए कहा कि संविदा सहायक प्राध्यापकों को कम से कम नियमित सहायक प्राध्यापकों का न्यूनतम वेतनमान दिया जाना चाहिए।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला तब शुरू हुआ जब कुछ संविदा सहायक प्राध्यापकों ने गुजरात सरकार द्वारा केवल ₹30,000 मासिक वेतन देने के फ़ैसले को चुनौती दी। उनका तर्क था कि वे नियमित और ऐड-हॉक प्राध्यापकों की तरह ही काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें समान वेतन नहीं दिया जा रहा है।

गुजरात हाईकोर्ट में पहले कई रिट याचिकाएं दाखिल हुई थीं। एकल न्यायाधीश ने वेतन समानता का आदेश दिया था, लेकिन बाद की अपीलों में अलग-अलग फैसले आए। कुछ बेंच ने न्यूनतम वेतनमान का हक़ माना, तो कुछ ने इसे नकार दिया। इसी विरोधाभास के चलते मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।

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कोर्ट ने शिक्षकों के साथ हो रहे व्यवहार पर गहरी चिंता जताई और कहा कि प्राध्यापक और व्याख्याता राष्ट्र की बौद्धिक रीढ़ होते हैं।

“सिर्फ़ सार्वजनिक कार्यक्रमों में ‘गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरुदेवो महेश्वरः’ का जाप करना काफ़ी नहीं है। अगर हम इस मंत्र में विश्वास करते हैं तो यह हमारे शिक्षकों के प्रति व्यवहार में भी दिखना चाहिए।”

कोर्ट ने बताया कि गुजरात के इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेजों में स्वीकृत 2,720 शिक्षकीय पदों में से केवल 923 पर नियमित नियुक्तियां हुईं। शेष पदों को ऐड-हॉक और संविदा नियुक्तियों से भरा गया, जिसकी वजह से कई शिक्षक सालों से कम वेतन पर काम कर रहे थे।

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न्यायालय ने पाया कि संविदा सहायक प्राध्यापक नियमित चयन प्रक्रिया से चुने गए थे और उनका कार्यभार नियमित व ऐड-हॉक प्राध्यापकों जैसा ही था। इसके बावजूद, जहाँ नियमित प्राध्यापक लगभग ₹1.36 लाख मासिक और ऐड-हॉक प्राध्यापक लगभग ₹1.16 लाख कमा रहे थे, वहीं संविदा प्राध्यापकों का वेतन 2025 तक भी सिर्फ़ ₹30,000 प्रति माह था।

कोर्ट ने इसे असमान और अन्यायपूर्ण करार दिया।

“उनके कार्य में कोई भिन्नता नहीं है। इसलिए राज्य द्वारा उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए था।”

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सुप्रीम कोर्ट ने संविदा सहायक प्राध्यापकों की अपील स्वीकार करते हुए ये आदेश दिए:

  • संविदा सहायक प्राध्यापकों को नियमित सहायक प्राध्यापकों के न्यूनतम वेतनमान पर भुगतान किया जाएगा।
  • बकाया वेतन का भुगतान 8% ब्याज सहित किया जाएगा, जिसकी गणना रिट याचिका दाखिल करने से तीन वर्ष पूर्व से होगी।
  • गुजरात सरकार को शिक्षकों के वेतन ढांचे को संतुलित करने और उन्हें गरिमा के साथ व्यवहार देने की नसीहत दी गई।

केस का शीर्षक: शाह समीर भरतभाई एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य

निर्णय की तिथि: 22 अगस्त 2025

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