केरल हाईकोर्ट ने शनिवार (25 अक्टूबर 2025) को एक महत्वपूर्ण आदेश में एक व्यक्ति के खिलाफ दायर बलात्कार और POCSO अधिनियम के तहत मामला रद्द कर दिया। अदालत ने पाया कि आरोप “बेहद देरी से लगाए गए” हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि यह शिकायत “वैवाहिक विवादों के बाद की सोची-समझी कार्रवाई” थी।
पृष्ठभूमि
यह मामला क्राइम नंबर 473/2021 (थडियिट्टापरंबु पुलिस स्टेशन, एर्नाकुलम) से संबंधित था। याचिकाकर्ता, जो एस.सी. नंबर 6/2022 (फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट, पेरुम्बवूर) में आरोपी थे, पर आईपीसी की धारा 363, 366, 370, 354A(1), 376(1) और POCSO अधिनियम की धारा 4 तथा 8 के तहत मामला दर्ज था।
अभियोजन के अनुसार, अगस्त 2013 में आरोपी ने शिकायतकर्ता (जो उस समय 17 वर्ष की थी) को मोटरसाइकिल पर घर से दूर एक सुनसान जगह ले जाकर यौन उत्पीड़न किया। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी ने बाद में भी कई बार उत्पीड़न किया।
हालांकि आरोपी ने कहा कि यह मामला उसकी पूर्व पत्नी द्वारा झूठा बनाया गया है और इसका मकसद “उसे परेशान करना और निजी बदला लेना” है। उन्होंने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मामला रद्द करने की मांग की।
अदालत के अवलोकन
न्यायमूर्ति सी. प्रताप कुमार ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि शिकायतकर्ता कोई अजनबी नहीं, बल्कि आरोपी की तलाकशुदा पत्नी है। दोनों ने 8 मार्च 2020 को शादी की थी, लेकिन कुछ महीनों बाद, 12 मार्च 2021 को पति ने तलाक दे दिया।
2020 से 2021 के बीच, शिकायतकर्ता ने पति के खिलाफ कई मामले दर्ज किए - जिनमें दो धारा 498A आईपीसी (दुर्व्यवहार) के तहत और एक घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत था। ये सभी मामले बाद में सुलह समझौते से समाप्त हो गए।
अदालत ने ध्यान दिलाया कि कथित घटनाएं 2013 और 2014 की हैं, जबकि शिकायत 2021 में दर्ज की गई - यानी 8 साल बाद। न्यायालय ने कहा, “इतनी लंबी देरी के लिए कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।”
जांच के दौरान यह भी सामने आया कि जिस दिन कथित रूप से एक घटना हुई बताई गई, उस दिन आरोपी स्कूल में मौजूद था। इससे अभियोजन की कहानी पर गंभीर संदेह उत्पन्न हुआ। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में कोई चिकित्सीय साक्ष्य या स्वतंत्र गवाह नहीं है।
न्यायाधीश ने टिप्पणी की -
“जब शिकायतकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया कि वह बालिग होने के बाद भी आरोपी के साथ संबंध में थी, और कोई स्वतंत्र या चिकित्सीय साक्ष्य मौजूद नहीं है, तो ऐसी स्थिति में कार्यवाही जारी रखना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”
अदालत ने आगे कहा कि शिकायत “विवाह टूटने के बाद प्रतिशोध की भावना से प्रेरित प्रतीत होती है।”
निर्णय
अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि मुकदमा “कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं” है और इसे जारी रखना न्यायिक संसाधनों की बर्बादी होगी।
आदेश में कहा गया -
“पूर्व में दर्ज मामलों के निपटान और तलाक के बाद दी गई यह शिकायत पूरी तरह अविश्वसनीय है और इसे केवल प्रतिशोध की कार्रवाई माना जा सकता है।”
इस प्रकार, केरल हाईकोर्ट ने क्रिमिनल मिस. केस नंबर 4690/2022 को स्वीकार करते हुए एस.सी. नंबर 6/2022 (क्राइम नंबर 473/2021) की सारी कार्यवाही रद्द कर दी।
Case Title:- Xxxxxxxx v. State of Kerala & Ors.
Case Number:- Crl.M.C No. 4690 of 2022
Date of Order: October 25, 2025