SC ने बेंगलुरु भूमि विवाद में FIR रद्द की, आपराधिक कानून के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला

By Vivek G. • July 31, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने एस.एन. विजयलक्ष्मी और अन्य के खिलाफ एफआईआर को रद्द किया, यह मानते हुए कि विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का है और इसमें आपराधिक मंशा नहीं थी।

31 जुलाई 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एस.एन. विजयलक्ष्मी एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और कीर्ति राज शेट्टी मामले में दर्ज एफआईआर और संबंधित सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला आपराधिक नहीं बल्कि दीवानी प्रकृति का है।

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मामला

शिकायतकर्ता कीर्ति राज शेट्टी ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता पक्ष ने बेंगलुरु के भूपसंद्र गांव की ज़मीन के मामले में धोखा दिया।

इस भूमि पर वर्षों से विवाद चल रहा था। 30 नवंबर 2015 को, अपीलकर्ताओं ने 3.5 करोड़ रुपये में ज़मीन बेचने के लिए एक संपत्ति विक्रय समझौता (एटीएस) किया और पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) भी दी। ₹2 लाख अग्रिम भुगतान हुआ।

लेकिन 2022 में, जब जीपीए रद्द कर दी गई और ज़मीन आपसी पारिवारिक हस्तांतरण में चली गई, तब विवाद खड़ा हुआ।

“मुझे झूठे वादों पर भरोसा दिलाकर मुकदमेबाज़ी में फंसाया गया और ज़मीन नहीं दी गई,” – शिकायतकर्ता

उन्होंने आईपीसी की धारा 405, 406, 415, 417, 418, 420, 504, 506, 384, 120B सहपठित 34 के तहत धोखाधड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने एसीएमएम के समक्ष एक निजी शिकायत (पीसीआर संख्या 12357/2022) दर्ज की, जिसके कारण 05.10.2023 को एफआईआर संख्या 260/2023 दर्ज की गई।

मामला दीवानी प्रकृति का है:
अदालत ने कहा कि यह पूरी तरह से संपत्ति विवाद है। इसमें आपराधिक विश्वासघात जैसा कोई तत्व नहीं पाया गया।

धोखा देने की मंशा नहीं थी:
जमीन अपीलकर्ताओं की थी, उसे सौंपा नहीं गया था। इसलिए Section 406 (आपराधिक विश्वासघात) और Section 420 (धोखाधड़ी) लागू नहीं होते।

समझौते की शर्तें नहीं टूटीं:
समझौते में ज़मीन हस्तांतरण की समय सीमा नहीं थी। शिकायतकर्ता खुद मानते हैं कि ज़मीन की वैधता के लिए अभी भी मुकदमे चल रहे हैं।

"यदि आपराधिक मंशा नहीं हो, तो दीवानी विवाद को आपराधिक रंग देना न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"

कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला पलटा:
हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया।

  1. IPC की धारा 406 और420 एक साथ लागू नहीं हो सकतीं अगर मामला एक ही लेन-देन से जुड़ा हो।
  2. ATS की शर्तों में ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे आपराधिक मंशा साबित हो।
  3. Priyanka Srivastava केस (2015) 6 SCC 287 के अनुसार, एफआईआर से पहले एफिडेविट दायर करने की प्रक्रिया पूरी की गई थी।
  4. एफआईआर व चार्जशीट में आपराधिक कृत्य का कोई आधार नहीं मिला।
  5. चार्जशीट (28.08.2024) और संज्ञान आदेश (30.08.2024) भी रद्द किए गए।
  • एफआईआर क्राइम नंबर 260/2023, चार्जशीट, और संज्ञान आदेश को रद्द किया गया।
  • सह-आरोपी विद्यास्री वी.एस., जो अपील में पक्ष नहीं थीं, को भी समान राहत दी गई।
  • बीडीए (BDA) द्वारा की जा रही लंबित एसएलपी (SLP) के निपटारे तक, अपीलकर्ता कोई तृतीय-पक्ष अधिकार नहीं बना सकते।
  • दीवानी मुकदमा (civil suit) शिकायतकर्ता का चलता रहेगा।

अदालत ने प्रशासनिक चूक पर गहरी चिंता जताई:

"बेंगलुरु के आम नागरिकों के हित, सरकारी निकायों की लापरवाही और मिलीभगत से प्रभावित हुए हैं।"

BDA द्वारा 1992 में ज़मीन का डीनोटिफिकेशन, फिर हाईकोर्ट में अपील दायर कर वापस लेना, और साइट अलॉटियों की अनदेखी – अदालत ने इसे collusive litigation (मिलीभगत से मुकदमा) माना।

केस का शीर्षक: एस.एन. विजयलक्ष्मी एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य

निर्णय की तिथि: 31 जुलाई 2025

प्राथमिकी संख्या: अपराध संख्या 260/2023, सदाशिवनगर पुलिस स्टेशन, बेंगलुरु

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